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एक कहूँ तो दोइ हैं, दोइ कहूँ तो एक ।
यों दादू हैरान है, ज्यों है त्यों ही देख ॥
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सद्गुरु कबीर साहेब से परमात्मा के बारे में किसी ने प्रश्न किया कि, "परमात्मा एक है या अनेक और जीव(आत्मा) से उसका क्या सम्बन्ध है। इस पर सद्गुरु कबीर साहेब कहते हैं -
"एक कहूँ तो है नहीं, दो कहूँ तो गारि ।
जैसा है वैसा ही है, कहैं कबीर विचार ॥"
अर्थात परमात्मा एवं आत्मा एक नहीं है और परमात्मा एवं आत्मा अलग-अलग भी नहीं है, क्योंकि जैसी आत्मा है वैसा ही परमात्मा है और जैसा परमात्मा है वैसी ही आत्मा है। इनमें कोई अंतर नहीं है। जो जैसा हैं उसको वैसा ही जानना हैं, क्यों की कहने में नही आएगा ये ये बात बिना आत्मसात के समज नही आएगी ।
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