शनिवार, 3 अक्टूबर 2015

२९. ज्ञानी को अंग ~ २९

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🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*२९. ज्ञानी को अंग*
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*इन्दव छन्द*
*एक क्रिया करि किर्षि निपावत,*
*आदि रु अंत ममत्व बंध्यौ है ।*
*एक क्रिया करि पाक करै जब,*
*भोजन लौं कछु अन्न अन्न रंध्यौ है ॥*
*एक क्रिया मल त्यागत है,*
*लघुनीति करै कहुं नांहि फंध्यौ है ।*
*त्यौं यह जानि क्रिया अरु संग्रह,*
*सुन्दर तीनि प्रकार संध्यौ है ॥२९॥*
*ज्ञान की प्रकिया के तीन भेद* : कोई कृषि कर्म कर खेत में अन्न पैदा करता है, तथा आरम्भ से अन्त तक उसी कर्म को माने रहता है ।
कोई उस अन्न को चूल्हे पर चढ़ा कर तब तक पकाता है, जब तक उसको भोजन योग्य नहीं बना लेता । 
कोई उस अन्न को खा कर मल मूत्र के रूप में त्याग देता है, तथा उससे कोई ममत्व नहीं रखता । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - इसी अन्नप्रक्रिया के समान यह आत्मज्ञान भी कर्म, भक्ति एवं ज्ञान - इन तीनों प्रकार से बँधा है ॥२९॥
(क्रमशः)

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