॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =
= बारहवां १२ अध्याय =
= १५ आचार्य हरजीराम जी ~
देहली में सत्संग ~
देहली में सत्संग आरंभ हो गया । दादूवाणी का प्रवचन होने लगा । दादूवाणी का सुमधुर प्रवचन सबको रुचिकर ही होता है किन्तु संत साहित्य के जो प्रेमी होते हैं उनके लिये तो वह परमानन्द प्रदाता ही सिद्ध होता है । दादूवाणी का गंभीर प्रवचन भक्त लोग अति श्रद्धा भक्ति से सुनते थे । दादूवाणी संत- साहित्य का रहस्यमय ग्रंथ है । इसमें शास्त्रों के उच्चकोटि के सिद्धांत का प्रतिपादन हुआ है । दादूवाणी के रहस्यमय विचारों को सुनकर सत्संगी सज्जनों के हृदय विकसित होते थे । अति मधुर प्रवचन होता था । श्रोतागण सुनते- सुनते तृप्त नहीं होते थे । उक्त प्रकार धार्मिक जनता को आनन्द प्रदान करते हुये कुछ समय आचार्यजी देहली में विराजे । फिर जाने लगे तब आपके सेवकों ने तथा धार्मिक जनता ने भेंटादि द्वारा आचार्य हरजीरामजी महाराज का अच्छा सत्कार किया । देहली से विदा होकर आप पंजाब को पधारे ।
पंजाब की रामत ~
पंजाब में स्थानधारी साधुओं का तथा सेवकों का जहां- जहां आग्रह था वहां- वहां पधार कर दादूवाणी के प्रवचनों द्वारा श्रोताओं को सुख शांति प्रदान करते हुये विचरे । सेवकों तथा संतों ने भी अपने प्रिय आचार्यजी की इच्छानुसार सेवा की । फिर पंजाब से शनै: शनै: भ्रमण करते हुये तथा धार्मिक जनता को उपदेश देते हुये नारायणा दादूधाम में पधार गये ।
चांदसीन में चातुर्मास ~
चांदसीन में चातुर्मास ~
वि. सं. १९५० में चान्दसीन जमात के रामरक्षपाल जी ने, आचार्य हरजीरामजी महाराज को चातुर्मास का निमंत्रण दिया । आचार्यजी ने स्वीकार कर लिया । चातुर्मास का समय समीप आने पर आचार्य हरजीरामजी महाराज अपने शिष्य संत मंडल के सहित चातुर्मास करने चान्दसीन पधारे । चान्दसीन जमात ने बडे ठाट बाट से आचार्य हरजीरामजी महाराज का सामेला किया । बाजे गाजे से संकीर्तन करते हुये जमात में ले जाकर रामरक्षपालजी के स्थान में शोभा यात्रा समाप्त की । प्रसाद बांटा गया । चातुर्मास आरंभ हो गया । चातुर्मास के सभी कार्यक्रम अच्छी प्रकार चलने लगे । संतों का समागम अच्छा रहा । सत्संग भी अच्छा चला । समाप्ति पर रामरक्षपालजी ने आचार्य हरजीरामजी महाराज को मर्यादा के अनुसार भेंट दी और शिष्य संत मंडल को यथायोग्य वस्त्रादि दिये । फिर सस्नेह विदा कर दिये ।
(क्रमशः)
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