💐💐 #daduji 💐💐
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =
= बारहवां १२ अध्याय =
= १५ आचार्य हरजीराम जी ~
राजगढ का चातुर्मास ~
वि. सं. १९४९ में आचार्य हरजीरामजी महाराज को चातुर्मास का निमंत्रण राजगढ के संत बालमुकुन्दजी ने दिया । आचार्यजी ने स्वीकार किया । चातुर्मास का समय समीप आने पर आचार्य हरजीरामजी महाराज अपने शिष्य संत मंडल के सहित राजगढ पधारे । संत बालमुकुन्दजी ने बडे ठाट बाट से आचार्य हरजीरामजी महाराज की अगवानी की । भेंट चढाकर प्रणाम सत्यराम आदि शिष्टाचार के पश्चात् बाजे गाजे से संकीर्तन करते हुये स्थान पर लाकर ठहराया । सेवा का प्रबन्ध सब अच्छी प्रकार करा दिया । चातुर्मास के कार्यक्रम सब विधि विधान से होने लगे । अच्छा चातुर्मास हुआ । समाप्ति पर मर्यादानुसार आचार्यजी को भेंट दी तथा शिष्य संत मंडल को यथायोग्य वस्त्रादि देकर सस्नेह विदा किया ।
देहली गमन ~
राजगढ के चातुर्मास से विदा होकर आचार्य हरजीरामजी महाराज देहली के भक्तों के आग्रह से वि. सं. १९४९ कार्तिक शुक्ला अष्टमी को देहली पधारे । उस समय भारत की राजधानी देहली नगरी के भक्तों ने सरकार से विशेषाज्ञा प्राप्त करके आचार्य हरजीरामजी महाराज की शोभा यात्रा देहली के रेलवे स्टेशन से आचार्य हरजीरामजी महाराज को हाथी पर बैठाकर आरंभ की थी । यह शोभा यात्रा बडे ठाट बाट से बाजे गाजे से संकीर्तन करते हुये आरंभ हुई । मार्ग में भवनों की अटारियों से आचार्यजी पर पुष्प वृष्टि होती जा रही थी । सडक पर भक्त लोग पुष्प मालायें और भेंट समर्पण करते जा रहे थे । आचार्यजी के कर्मचारी भेंट चढाने वालों को प्रसाद देते जा रहे थे । गायक संत लोग महात्माओं के पद गाते हुये साथ- साथ चल रहे थे । भक्त मंडल की अनेक मंडलियां आगे पीछे ईश्वर नामों का संकीर्तन करते हुये चल रही थीं । स्थान- स्थान पर दादूदयालु महाराज की जय ध्वनि होती थी । हाथी की सवारी में रुकावट डालने वाले तार आदि को म्युनिसिपल कमिश्नर की आज्ञा से हटा दिये गये थे । यह शोभा यात्रा निर्विध्न हो रही थी । साथ में सरकारी पुलिस चल रही थी । कोई असुविधा होती तो उसे तत्काल मिटा देती थी । यह सुन्दर शोभा यात्रा स्टेशन से चलकर- फतहपुरी, चान्दनी चौक, घन्टाघर आदि प्रमुख बाजारों से होती हुई जहां आचार्यजी को ठहराने का स्थान नियत किया था वहां आ गई । आचार्यजी के दर्शनों से भक्त जनता को अति आनन्द का लाभ हुआ । प्रसाद बांटकर शोभा यात्रा समाप्त की ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें