रविवार, 15 नवंबर 2015

= विन्दु (१)३८ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*= विन्दु ३८ दिन २० =*
.
कनक कलश विष से भरा, सो किस आवे काम । 
सो धन कूटा चाम का, जा में अमृत राम ॥ 
यदि सोने का कलश विष से भरा हो तो वह विष किस काम का है ? अर्थात् मारक ही होगा वैसे ही उच्च जाति में दुर्जन हो तो वह भी किस काम का है ? अर्थात् हानि कारक ही होगा, और जिस चर्म पात्र में अमृत भरा हो  तो वह पान करने से अमर ही बनायेगा, इससे वह धन्यवाद के योग्य है, वैसे ही हीन जाति वाले के हृदय में भी यदि  निरंतर राम का चिन्तन होता हो तो वह भी धन्यवाद के योग्य ही होता है । 
.
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, यह वर्ण विभाग  गुण तथा कर्मों को देखकर ही किया गया था । जन्म तो सबका समान रूप से होता है फिर कुछ संस्कारोंके द्वारा भेद मान लेते हैं । जैसे द्वितीय संस्कार यज्ञोपवीत होने से द्विज इत्यादिक और विशेष रूप से जिनमें शम, दम, तप, शौच, क्षमा, आर्जव, ज्ञान, विज्ञान, आस्तिकतादि गुण देखे गये थे उनको ब्राह्मण संज्ञा दी थी । 
.
जिनमे - शौर्य, तेज, धैर्य, दक्षता,युद्ध में स्थिरता, दान देने तथा ईश्वरता का स्वभाव ये गुण देखे गये थे उनको क्षत्रिय संज्ञा दी थी ।
.
कृषि, गोरक्षा, वाणिज्य करने वालों को वैश्य संज्ञा दी थी । 
.
सेवा करने वालों को शूद्र संज्ञा दी थी । 
.
इस प्रकार जिन गुणों को देखकर जो संज्ञायें दी थी, वे गुण उनमें नहीं हों तो वह जाति भी यथार्थ नहीं कही जा सकती है वैसे ही आश्रमों की संज्ञा है - विवाह से पूर्व वेदाध्ययन के समय तक आयु को ब्रह्मचर्य(वेद में गति करने वाला) संज्ञा दी थी । विवाह करके गृह में निवास करे उस आयु विभाग  को गृहस्थ संज्ञा दी थी । 
.
गृहस्थ के पश्चात् वन में रहकर तपस्या करने वालों को वनस्थ संज्ञा दी थी और सब का त्याग करके ब्रह्म चिन्तन करने वाले को सन्यासी संज्ञा दी थी । ये सब अपनी-अपनी मर्यादा में हैं, तब तो ठीक ही है और मर्यादा का त्याग करके जिस जाति की मर्यादा में जायें वही जाति उनकी कही जाती है । 
.
जैसे ब्राह्मण अपनी मर्यादा को त्यागकर मुसलमान हो जाता है तब मुसलमान ही कहा जाता है, ब्राह्मण नहीं । जाति वर्णाश्रम का संक्षिप्त रूप में यही रहस्य समझ में आता है । अतः कर्त्यव के अनुसार ही जाति की संज्ञा हुई थी ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें