रविवार, 15 नवंबर 2015

"श्री दादू पंथ परिचय"(अ. १५)

॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =

अध्याय १५ ~ 
१८ आचार्य प्रकाशदेव जी ~ 
आचार्य प्रकाशदेव जी को मेलों में, उत्सवों में, बृहद् संत- सम्मेलनों में पंथ स्वरुप परमेश्‍वर को कई बार दंडवत करते हुये मैं(कनिरामजी) ने देखे थे । मेरे पूछने पर कि आप दंडवत किस को कर रहे थे । सामने वाणी जी भी नहीं थी । तब वे कहते थे भेष भगवान् जो एकत्र हो रहा है उसे ही मैं दंडवत कर रहा था । उक्त मुहर में अंकित ‘‘दादूपंथी दासानुदास’’ भावना प्रकाशदेव जी महाराज में दॄढ थी । उक्त भावना से सूचित होता है कि उनकी नम्रता कितनी विशाल थी । उन में अभिमान का तो लेश भी नहीं ज्ञात होता था । आचार्य प्रकाशदेव जी महाराज परम कृपालु थे । इस ग्रंथ के लेखक पर भी उसकी महान कृपा थी । नारायणा दादूधाम के वार्षिक मेले में मैं नारायणा जाता था तब उस मेले के समय जबकि उनको हजारों महानुभावों के साथ बातों में लगे रहने का प्रसंग रहता था । किन्तु फिर भी मेरे को नहीं भूलते थे । मुझे अपने निवास के महल की छत पर बनी हुई एकान्त की कुटिया में ठहराकर मेरी संपूर्ण व्यवस्था ऊपर ही करा देते थे । उस मेले के समय पर रात्रि की नियत समय पर मेरे लिये दूध भिजवा देते थे । इससे निश्‍चय होता है कि मेरे जैसे साधारण जन का इतना ध्यान रखते थे तो यह उनकी परम कृपालुता का द्योतक कार्य हैं । 
आचार्य प्रकाशदेव जी महाराज ने अपने मंडल के सहित निम्नलिखित चातुर्मास किये थे । १. बाबाजी गंगादासजी महाराज के यहां प्याऊ पर वि. सं. २००३ में किया था । यह चातुर्मास बहुत ही अच्छा हुआ था । २. संत गोर्धनदासजी महावीर वालों के ३. राममोला महन्त रामूदास जी के ४. नारायणा खेजडाजी के बाबा चैनजी की प्रेरणा से । ५. संत मांगीदासजी निवाई जमात वालों के वि. सं. २००६ में किया था ६. संत पूर्णदासजी मऊ वालों के ७. संत भोलारामजी बडू वालों के ८. संत गोविन्ददास जी रामपुरा वालों के ९. महन्त दयारामजी गूलर वालों के १०. राजगढ में रामनाथदासजी नारायणा वालों की ओर से ११. मेडता श्री कृष्णदेवजी की छत्री में बाबा गंगादासजी प्याऊ वालों की ओर से १२. विद्याद बाबा गंगादासजी की शिष्या मोहन बाई जी के १३. बोडावड बाबा गंगादास जी की शिष्या मनोहर बाईजी के १४. ईन्दावड भंडारी मंगलदासजी के । उक्त सभी चातुर्मास आचार्य प्रकाशदेव जी महाराज के चातुर्मास की संपूर्ण मर्यादाओं से युक्त हुये । सभी में सत्संग, भजन, नाम संकीर्तन आदि साधन अति सुन्दर रीति से होते रहे थे । सभी में मर्यादानुसार भेंट आदि की प्रथा पूर्ण रुप से संतोष जनक रही थी और चातुर्मास कराने वाले मकानभावों को आचार्य जी की ओर से यथेष्ट आशीर्वाद प्राप्त हुये थे । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें