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*दादू भृंगी कीट ज्यूं, सतगुरु सेती होइ ।*
*आप सरीखे कर लिये, दूजा नाहीं कोइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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बुल्लेशाह कहते हैं।
आपने आपनूं समझ पहले, कि वस्त है तेरड़ा रूप प्यारे। अर्थात हे प्यारे, पहले अपने आप को समझ कि तेरा यह रूप क्या है, किसलिए है ? सच्चा गुरु गुरु नहीं होता, मित्र होता है; शिष्य से ऊपर नहीं होता, शिष्य का संगी साथी होता है।
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गौतम बुद्ध कहते हैं:
जब मेँ पहली बार अपने पिछले जन्म मेँ एक बुद्ध पुरुष के दर्शन करने को गया तो बहुत चौका था। झुक कर मैने उनके चरण छुए थे और मै उठ भी न पाया था कि वे झुके और उन्होंने मेरे चरण छुए। मै तो घबड़ा गया था। मै तो पसीने-पसीने हो गया था। मेरे तो हाथ-पैर कंप गए थे कि यह क्या हुआ। बुद्ध पुरुष और मेरे चरण छूएं !
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मैने उनसे निवेदन किया था कि आप यह क्या कर रहे हैं ? यह कैसा बोझ मेरे ऊपर डाल रहे हैं ? मेँ अपात्र, अयोग्य, साधारण, अज्ञानी; आप महाप्रबुद्ध ज्योतिर्मय, भागवत-स्वरुप ! आप मेरे चरण छुएं ! मै आपके छुऊँ यह समझ में आता है, छूने ही चाहिए। लेकिन आपने मेरे चरण क्यों छुए ?
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तो उन बुद्ध पुरुष ने हंस कर कहा था: जिस दिन से मै बुद्ध हुआ, उस दिन से मुझे कोई और तो दिखाई पड़ता नहीं, सभी के भीतर वही एक प्यारा दिखाई पड़ता है। और मै तुझसे कहता हूँ कि देर-अबेर की बात है कि मै अभी बुद्ध हो गया, तो कल तू बुद्ध हो जायेगा। कल मै भी बुद्ध नहीं था, आज मै बुद्ध हो गया। आज तू बुद्ध नहीं है, कल तू बुद्ध हो जायेगा। यह आज-कल का फासला भी तेरे भीतर है, यह हिसाब भी तेरे भीतर है।
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