शनिवार, 28 नवंबर 2015

= ५७ =

#‎daduji
卐 सत्यराम सा 卐
ज्ञानी पँडित बहुत हैं, दाता शूर अनेक ।
दादू भेष अनँत हैं, लाग रह्या सो एक ॥
इन्द्रिय - पोषणार्थ भेष बनाना उत्तम नहीं, यह कह रहे हैं - परोक्ष - ज्ञान युक्त ज्ञानी, शास्त्र के विद्वान्, दाता, वीर तो अनेक मिलते हैं और भेषधारियों का तो अन्त ही नहीं है किन्तु निरन्तर भगवद् भजन में ही लगा रहे, ऐसा तो कोई विरला ही मिलेगा ।
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साभार ~ राहुल कुमार ~

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 
वेषसे साधु साधु नहीं, गुणोंसे साधु साधु है

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