शनिवार, 28 नवंबर 2015

= ५६ =


卐 सत्यराम सा 卐
आंगण एक कलाल के, मतवाला रस मांहि ।
दादू देख्या नैन भर, ताके दुविधा नांहि ॥ 
पीवत चेतन जब लगै, तब लग लेवै आइ ।
जब माता दादू प्रेम रस, तब काहे को जाइ ॥ 
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

परमात्मा केवल शाब्दिक बातचीत न हो-प्यास हो। ऐसी प्यास हो कि उसके बिना मर जाएंगे।
विरह हो।
ऐसा हो कि जीवन-मरण का प्रश्न बने।
फिर प्रार्थना मांग-रहित, मांग-शून्य।
सिर्फ आह्लाद,
सिर्फ आनंद की अभिव्यक्ति,
सिर्फ धन्यवाद,
अनुग्रह का भाव और फिर प्रतीक्षा।
प्रतीक्षा सबसे महत्वपूर्ण है, सबसे अंत मे है। क्योँकि मनुष्य का मन बड़ी जल्दी मांग करता है।
मन कहता है, जल्दी कुछ हो जाए।
ये दीवानो का रास्ता है।
यहां सब दांव पर लगाने वाला चाहिये।
ये उनके लिये है जो कहते हैँ, आज हो तो ठीक।
कल हो तो ठीक।
परसोँ हो तो ठीक।
इस जन्म मे हो तो ठीक।
अगले जन्म मे हो तो ठीक।
कभी हो तो ठीक।
और कभी न हो तो भी ठीक।
जो कहते हैँ कि प्रार्थना में ही इतना आनंद है, अब और क्या चाहिये?
इतनी कृपा क्या कम है कि हमे प्रार्थना में संलग्न कर दिया?
और क्या चाहिये?

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