रविवार, 15 नवंबर 2015

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*दादू राम हृदय रस भेलि कर, को साधु शब्द सुनाइ ।*
*जानो कर दीपक दिया, भ्रम तिमिर सब जाइ ॥*
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साभार : नरसिँह जायसवाल ~
शराब से तौबा ~
प्रसिद्ध संत तिरुवल्लुवर एक बार अपने शिष्यों के साथ कहीं चले जा रहे थे। रास्ते में आने-जाने वाले लोग उनका अभिवादन कर रहे थे। तभी अचानक, एक शराबी झूमता हुआ उनके सामने आया और खड़ा हो गया। उसने संत तिरुवल्लुवर से पूछा, आप लोगों से यह क्यों कहते फिरते हैं कि शराब बहुत खराब चीज है ? मत पिया करो। क्या अंगूर खराब होते हैं, क्या चावल बुरी चीज है ? अगर ये दोनों चीजें अच्छी हैं तो इनसे बनने वाली शराब कैसे बुरी हो गई ?
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लोग हैरत से देखने लगे कि संत तिरुवल्लुवर इस पर क्या जवाब देते हैं।
संत मुस्कराकर बोले - भाई, अगर तुम पर मुट्ठी भरकर कोई मिट्टी फेंके या कटोरा भरकर पानी डाल दे तो क्या इससे तुम्हें चोट लगेगी ?
शराबी ने ना में सिर हिलाया तो संत ने फिर कहा - लेकिन इसी मिट्टी में पानी मिलाकर उसकी ईंट बनाकर तुम पर फेंकी जाएं तब... ?
शराबी ने कहा - जाहिर सी बात है, उससे तो मैं घायल ही हो जाऊंगा।
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संत तिरुवल्लुवर ने शराबी को फिर समझाते हुए कहा - देखो भाई, जब मिट्टी में पानी मिलाकर उसकी ईंट बनाकर तुम पर फेंकी जाए तब तुम उससे घायल हो जाओगे, इसी प्रकार अंगूर और चावल भी अपने आप में बुरे नहीं है, लेकिन यदि इन्हें मिलकर शराब बनाकर सेवन किया जाए तो यह मनुष्य के लिए नुकसानदेह है। यह स्वास्थ्य को खराब करती है। इससे व्यक्ति की सोचने की क्षमता पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है। इसके कारण कई बार अनेक परिवार नष्ट हो जाते हैं। संत की इस बात का उस शराबी पर बहुत गहरा असर पड़ा। उसने उसी दिन से शराब से तौबा कर ली।

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