मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

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卐 सत्यराम सा 卐
अनदेख्या अनरथ कहैं, अपराधी संसार ।
जद तद लेखा लेइगा, समर्थ सिरजनहार ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya
जीसस के पास एक स्त्री को लाया गया। गांव स्त्री के खिलाफ है, क्योंकि स्त्री ने व्यभिचार किया है। और पुरानी बाइबिल कहती है कि जो स्त्री व्यभिचार करे, उसे पत्थरों से मार डालना चाहिए। जीसस नदी के किनारे रेत पर बैठे हैं। सारा गाव इकट्ठा हो गया है और उन्होंने कहा, इससे, जीसस से पूछ लो, यह बहुत शान की बातें करता है। और इससे एक बात यह भी पता चल जाएगी कि पुराने धर्म के पक्ष में है या विरोध में। तो उन्होंने पूछा कि तुम क्या कहते हो? पुराने पैगंबरों ने कहा है कि जो स्त्री अनाचार करे, व्यभिचार में पड़े, उसे पत्थर मारकर मार डालना चाहिए; तुम क्या कहते हो? क्योंकि जीसस तो हमेशा ऐसा ही कहते थे, पुराने पैगंबरों ने ऐसा कहा है, लेकिन मैं ऐसा कहता हूं। तो अब तुम क्या कहते हो?
जीसस ने कहा कि पुराने पैगंबरों ने कहा है कि जो तुम्हें ईंट मारे, उसे तुम पत्थर मारना, और जो तुम्हारी एक आंख फोड़े, तुम उसकी दूसरी भी फोड़ देना। लेकिन मैं तुमसे कहता हूंकि जो तुम्हारे एक गाल पर चाटा मारे, तुम दूसरा गाल भी उसके सामने कर देना और जो तुम्हारा कोट छीन ले, कमीज भी उसे दे देना और जो तुमसे कहे, एक मील तक इस बोझ को ढोओ, तुम दो मील तक उसके साथ चले जाना; मैं तुमसे ऐसा कहता हूं।
तो उन्होंने कहा, अब तुम क्या कहते हो? पुराने पैगंबर कहते हैं, पत्थर मारकर इसे मार डालना। उन्होंने एक उपाय खोजा था जीसस को फासने का। या तो जीसस कहेंगे, पुराने पैगंबर गलत कहते हैं, तो भी वे जीसस पर नाराज होते—तो एक तुम्हीं पैगंबर हो! अब तक सब नासमझ ही हुए! या जीसस कहेंगे, पुराने पैगंबर ठीक कहते हैं; तो हम कहेंगे, फिर क्या हुआ तुम्हारे उस प्रेम के सिद्धात का कि कोई एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा सामने कर देना। पत्थर मारकर मार डालने को कहते हो? हत्या के लिए कहते हो? दोनों हालत में जीसस फंस जाएंगे। गांव बड़ा उत्सुक था। गांव का जो रबाई था, जो धर्मगुरु था, वह भी आगे खड़ा था आकर कि पूछो इस युवक से, यह क्या कहता है?
और जीसस ने एक क्षण सोचा और कहा, आप पत्थर उठा लें—नदी का किनारा था, पत्थर तो पड़े ही थे, ढेर लगे थे, लोगों ने पत्थर उठा लिए—और जीसस ने कहा, अब मैं कहता हूं, जिस आदमी ने कभी व्यभिचार न किया हो, या व्यभिचार का विचार न किया हो, वह पहला पत्थर मारे। वे जो आगे खड़े बड़े—बुजुर्ग थे, धीरे—धीरे भीड़ में पीछे हट गए। धर्मगुरु भी भीड़ में भीतर सरक गया। धीरे—धीरे भीड़ छंट गयी, जीसस और वह स्त्री अकेले वहां छूट गए।
वह स्त्री तो उनके पैरों में गिर पड़ी। उसने कहा, तुमने मुझे जीवनदान दिया, तुमने मुझे बचा लिया, अन्यथा आज वे मुझे मार डालते। लेकिन पाप तो मैंने किया है। उनसे तो मैं इनकार भी करती रही, तुमसे मैं इनकार भी कैसे करूं, पाप तो मैंने किया है। अब तुम मुझे जो सजा देना चाहो, दो।
जीसस ने कहा, मै तुझे सजा देने वाला कौन, यह तेरे और तेरे परमात्मा के बीच की बात है, मैं बीच में आने वाला कौन, अगर तुझे लगता है कि यह पाप है, तो अब मत करना, और अगर तुझे लगता हो कि पाप नहीं है, तो तेरी मर्जी। जो तुझे पाप न लगे तो जरूर करना। रही बात निर्णय की, तो तेरा परमात्मा और तेरे बीच निर्णय होगा, मै कौन हूं बीच में!
उस स्त्री के जीवन में क्रांति घट गयी। क्रांति घट गयी इसीलिए कि इस आदमी ने निंदा नहीं की। इसने कहा, मै कौन हूं! इस आदमी ने कोई वक्तव्य ही न दिया। इसने यह भी न कहा कि यह पाप है! इसने कहा कि तुझे पाप लगता हो तो छोड़ देना। जब तुम्हें पाप लगता है तो छूट ही जाता है, छोड़ना भी नहीं पड़ता। दूसरे के कहने से कोई छोड़ता है! और निंदा तो करना ही मत, निर्णय तो लेना ही मत। दूसरे आदमी के हम मालिक नहीं हैं। उसकी स्वतंत्रता परम है, उसकी गरिमा परम है। उसके ऊपर निंदा का एक शब्द भी उठाना सिर्फ अपनी हीनता की घोषणा है । .....ओशो

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