सोमवार, 28 दिसंबर 2015

पद. ४३०

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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४३०.(गुजराती) काल चेतावनी । प्रति ताल ~
काल काया गढ़ भेलसी, छीजे दशों दुवारो रे । 
देखतड़ां ते लूटिये, होसी हाहाकारो रे ॥ टेक ॥ 
नाइक नगर नें मेल्हसी, एकलड़ो ते जाये रे । 
संग न साथी कोइ न आसी, तहँ को जाणे किम थाये रे ॥ १ ॥ 
सत जत साधो माहरा भाईड़ा, कांई सुकृत लीजे सारो रे । 
मारग विषम चालिबो, कांई लीजे प्राण अधारो रे ॥ २ ॥ 
जिमि नीर निवाणा ठाहरे, तिमि साजी बांधो पालो रे । 
समर्थ सोई सेविये, तो काया न लागे कालो रे ॥ ३ ॥ 
दादू मन घर आणिये, तो निहचल थिर थाये रे । 
प्राणी नें पूरो मिलै, तो काया न मेल्ही जाए रे ॥ ४ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमें काल से चेत कराते हैं कि हे हमारे जीव रूप मन ! समर्थ राम का भजन किये बिना तो, वह जबरदस्त काल, तेरे काया रूपी गढ़ को भेल देगा अर्थात् पँच ज्ञानेन्द्रियें और पँच कर्मेन्द्रियें तथा दस द्वार वाला मनुष्य शरीर क्षीण हो जाएगा और तेरे दसवें द्वार को काल फोड़ देगा । तत्ववेत्ता पुरुषों के देखते - देखते या तेरे देखते - देखते ही, इस काया रूप नगर में अन्त समय में हाहाकार मच जायेगा और इस काया के राजा मन रूप जीव को यमदूत नहीं छोड़ेंगे । उनके साथ अकेले को ही जाना पड़ेगा । तेरे संग के साथी उस समय कोई भी काम नहीं आवेंगे । फिर वहाँ पर न मालूम तेरे साथ क्या बर्ताव करेंगे ? इसलिये हे हमारे मन ! सत् - स्वरूप परमात्मा के नाम - स्मरण और जत = ब्रह्मचर्य आदि की साधना करो । कोई सार सुकृत कर्म रूपी धन साथ में लेओ । आगे बड़े कठिन मार्ग पर चलना पड़ेगा । कुछ प्राणों की रक्षा के लिए सार कमाई लीजिए । जैसे नीची भूमि में जल ठहरता है, वैसे ही तुम भी संयम आदि साधनों को अपना कर भजन रूपी बाँध बांधिये, तो यह मन रूपी जल या नाम स्मरण रूपी जल हृदय - प्रदेश में रुकेगा । तब उस समर्थ प्रभु की भक्ति करने से तुम्हारी काया, कहिए सूक्ष्म शरीर को काल पकड़ कर नहीं ले जाएगा और फिर स्थिर मन से ब्रह्म - स्वरूप में अभेद हो जाओगे अर्थात् प्राणधारी को पूर्ण ब्रह्म प्राप्त होवेगा । फिर वह अपने सूक्ष्म शरीर को संसार में छोड़कर नहीं जाता । किन्तु सभी व्यष्टि, सूक्ष्म सृष्टि, अपने अपने कारण अपँचीकृत भूतों में लय हो जाती है ।(पाठान्तर ‘सतजन’ की जगह ‘संत जन’ ।)

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