बुधवार, 2 दिसंबर 2015

(३४. आश्चर्य को अंग=१०)

💐
🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI 
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*३४. आश्चर्य को अंग*
.
*भूमि हु तैसैं हि आपु हु तैसैं हिं,*
*तेज हु तैसैं हिं तैसैं हि पौंना ।*
*व्यौमहु तैसैं हिं आहि अखंडित,*
*तैसैं हिं ब्रह्म रह्यौ भरि भौंना ।*
*देह संजोग विजौग भयौ जब,*
*आयौ सु कौंन गयौ कहि कौंना ।*
*जो कहिये तौ कहै न बनैं कछु,*
*सुंदर जांनि गही मुख मौंना ॥१०॥*
इस देह संयोग में भूमि, जल, तेज, वायु एवं आकाश सभी तत्व अपने अपने स्थान में हैं । 
इसी तरह ब्रह्म का स्थान भी जीव रूप से इस देह में नियत है । 
इस देह का पात(अन्त) होने पर कौन कहाँ से आया, या कौन कहाँ चला गया ? - यह ज्ञात नहीं होता । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - इस विषय में कुछ कहना चाहें तो भी कहा नहीं जा सकता । अतः मौन रहना ही अच्छा है ॥१०॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें