गुरुवार, 21 जनवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/२२-४)


॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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गुरु शब्द
साचा सहजैं ले मिले, शब्द गुरु का ज्ञान ।
दादू हमकूं ले चल्या, जहं प्रीतम का स्थान ॥२२॥
२२ - २३ में गुरु के शब्दों की विशेषता बता रहे हैं - सच्चा साधक गुरु शब्दों के द्वारा ज्ञान प्राप्त करके अनायास ही ब्रह्म को प्राप्त होता है । हमको भी गुरु शब्दों के ज्ञान ने ही जहां समाधि में प्रियतम ब्रह्म के साक्षात्कार होने का निर्विकल्प - स्थिति रूप स्थान है, वहां पहुंचाया है ।
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दादू शब्द विचार कर, लाग रहे मन लाइ ।
ज्ञान गहै गुरुदेव का, दादू सहज समाइ ॥२३॥
गुरु के शब्दों का विचार करते हुये, मन लगाकर, ब्रह्म चिन्तन में ही लगा रहे और गुरुदेव का अभेद - ज्ञान ग्रहण करे तो अवश्य सहज स्वरूप ब्रह्म में ही समा जाता है ।
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दया बिनती
दादू सद्गुरु शब्द सुनाइ कर, भावै जीव जगाइ ।
भावै अन्तर आप कहि, अपने अँग१ लगाइ ॥२४॥
२४ में विनय और २५ - २७ में गुरु - दया दिखा रहे हैं - हे सद्गुरो ! चाहे तो आप अपना शब्द सुनाकर जीव को जगाओ, चाहे आप हृदय में प्रेरणा करके ही अपने स्वरूप१ में लगाओ ।
(क्रमशः)

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