बुधवार, 20 जनवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(प्र. उ. १५) =

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🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ प्रथम उल्लास =*
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*-छप्पय -* 
*सदा प्रसन्न सुभाव, प्रगट सर्वोपरि राजय ।* 
*तृप्त ज्ञान विज्ञान, अचल कुटस्थ विराजय ॥* 
*सुख निधान सर्वज्ञ, मान अपमान न जानै ।* 
*सारासार बिबेक, सकल मिथ्या भ्रम भानै ॥* 
*पुन ‍‌‍‍‍‍‍‍भिध्यन्ते हृदि ग्रन्थि कौं,* 
*छिध्यन्ते सब संशयं१ ।* 
*कहि सुन्दर सो सद्गुरु सही,* 
*चिदानन्दघनचिन्मयं ॥१५॥*
(१ तु॰- भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशया: ।- कठोपनिषद्)
जो सर्वदा प्रसन्न स्वभाव वाला हो, जिसका स्वरुप देखने मात्र से लोकोत्तर दिखायी दे । जिसकी आत्मा सदा ज्ञान विज्ञान से तृप्त हो, जो अटल दिखायी दे,("ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रिय:" भ॰ गी॰ ६/८) जो सदा सुखी रहता हो, सर्वज्ञ हो, मान अपमान से रहित हो, शास्त्र अथवा संसार के सार असार का विवेचन करना जानता हो, जो समग्र जगत् का मिथ्यात्व तथा भ्रम मिटाने वाला हो । 
फिर जिसके हृदय में सर्व प्रकार के द्वैत तथा सभी प्रकार के सांसारिक भ्रम दूर हो चुके हों । श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं, ऐसे चिदानन्दस्वरूप महापुरुष ही किसी जिज्ञासु के सद्गुरु होने के योग्य है ॥१५॥
(क्रमशः)

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