मंगलवार, 5 जनवरी 2016

= १४७ =

卐 सत्यराम सा 卐 
दादू राम कसै सेवक खरा, कदे न मोड़ै अंग ।
दादू जब लग राम है, तब लग सेवक संग ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya ~ 

ऐसा हुआ। एक बार एक किसान भगवान की प्रार्थना—प्रार्थना करते—करते इतना कुशल हो गया प्रार्थना में कि भगवान को अवतरित होना पड़ा। उन्होंने कहा कि तुझे मांगना क्या है! तू मांगता तो कभी कुछ नहीं। किए जाता है प्रार्थना!

उसने कहा अब आप आ गए; अब मांगे लेता हूं। बात यह है कि मुझे ऐसा शक है कि आपको खेती—बाड़ी नहीं आती! दुनिया बनायी होगी आपने भला, मगर खेती—बाड़ी का आपको कोई अनुभव नहीं है। जब जरूरत होती है पानी की, तब धूप! जब धूप की जरूरत होती है, तब पानी! जब किसी तरह फसल खड़े होने को हो जाती है, तो अंधड़, ओले, तुषार। आपको बिलकुल अकल नहीं है। यही कहने के लिए इतने दिन से प्रार्थना करता था। एक बार मुझे मौका दो, तो मैं आपको दिखलाऊं कि खेती—बाड़ी कैसे की जाती है!

पुरानी कहानी है, तब तक परमात्मा इतना समझदार नहीं हुआ था। वह राजी हो गया। उसने कहा. चलो, ठीक है। इस वर्ष तू जो चाहेगा, वही होगा।

किसान ने जो चाहा, वही हुआ। जब उसने धूप मांगी, धूप आयी। जब उसने पानी मागा, पानी आया। और स्वभावत:, किसान तो भूलकर भी क्यों मांगता अंधड़, ओले, तुषार। वे तो कुछ आए नहीं।

खेत बड़े होने लगे। ऊंचे उठने लगे पौधे। ऐसे जैसे कभी नहीं उठे थे। सिर के पार होने लगे! किसान ने कहा. अब! अब दिखलाऊंगा कि देखो, क्या गजब की फसल हो रही है!

पौधे तो बडे—बड़े हो गए। फसल पकने का मौका भी आ गया। लेकिन उनमें गेहूं नहीं पके। पोचे! सिर्फ खोल! भीतर गेहूं नहीं। वह बड़ा हैरान हुआ। वह बड़ी तकलीफ में पड़ा कि अब क्या होगा!

तो फिर परमात्मा की प्रार्थना की और कहा कि मुझ से भूल कहां हो गयी?

परमात्मा ने कहा बिना ओलों के सत्य पैदा होता ही नहीं। चुनौती चाहिए।

तूने अच्छा — अच्छा मांग लिया; मीठा—मीठा मांग लिया। खारे की भी जरूरत है। तूने सुख ही सुख मांग लिया, दुख की भी जरूरत है। दर्द निखारता है। तूने अच्छा— अच्छा मांग लिया। खूब पानी मांगा। धूप मिली। यह सब किया। लेकिन तूने संघर्ष का मौका ही नहीं दिया पौधों को। इसलिए संघर्ष नहीं था, तो पौधों की जड़ें मजबूत नहीं हुईं। पौधे ऊपर तो उठ गए, लेकिन नीचे कमजोर हैं। जरा जड़ें तो उखाड़कर देख!

देखा, तो जडें बड़ी छोटी—छोटी। तो भूमि से सत्व नहीं मिला। जब पौधों को अंधड़ झेलना पड़ता है, खतरा लेना पड़ता है, तो जड़ें गहरी जाती हैं।

संघर्ष, परमात्मा ने कहा उस किसान को, अत्यंत जरूरी है। नहीं तो संकल्प पैदा नहीं होता। और संकल्प पैदा न हो, तो समर्पण तो कभी पैदा होगा ही नहीं। चुनौती चाहिए।...osho

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