卐 सत्यराम सा 卐
दादू मोह संसार को, विहरै तन मन प्राण ।
दादू छूटै ज्ञान कर, को साधु संत सुजाण ॥
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साभार ~ Anand Nareliya ~
जो शुभ ही शुभ देखने वाला है, उसकी तृष्णा और बढ़ती है।’
राग शब्द बडा प्यारा है। इसका अर्थ होता है, रंग। कहते हैं न, राग—रंग। राग का अर्थ होता है रंग! जिसकी आंखों पर रंग चढ़ा है, वह जिंदगी को वैसा नहीं देख पाता, जैसी जिंदगी है।
जब तुम किसी स्त्री के प्रेम में पड़ जाते हो, या किसी पुरुष के प्रेम में पड़ जाते हो, तो तुम वही नहीं देख पाते, जो असलियत है। तुम वह देखने लगते हो, जो तुम कल्पना करते हो कि होना चाहिए। रंग पड़ गया आंख पर। और जब रंग पड़ जाता है, तो कुछ का कुछ दिखायी पड़ता है। जहां सूखे वृक्ष हैं, वहां हरियाली दिखायी पड़ने लगती है। जहां हड्डी—मास—मज्जा के सिवाय कुछ भी नहीं, वहां बड़े सौंदर्य के दर्शन होने लगते हैं! जहां सब तरह की गंदगी भरी है, वहां तुम कल्पित करने लगते हो : सुगंध। तथ्य दिखायी नहीं पडते फिर। फिर तुम्हारे सपने तथ्यों पर हावी हो जाते हैं।
तो बुद्ध ने कहा ‘जो तीव्र राग से युक्त है, शुभ ही शुभ देखने वाला है.?।
‘और जब राग से भरे होते हो, तो सब ठीक ही ठीक दिखायी पड़ता है। गलत तो दिखायी ही नहीं पड़ता है। और इस संसार में गलत बहुत है। ठीक तो न के बराबर है, शायद है ही नहीं। गलत ही गलत है। लेकिन जब तुम राग से भरे होते हो, तो सब ठीक दिखायी पड़ता है। जिस चीज के राग से भर जाते हो, उसमें ही ठीक दिखायी पड़ने लगता है।
और ठीक यहां कुछ भी नहीं है। यहां ठीक हो कैसे सकता है? यहां मृत्यु प्रतिपल खड़ी है तुम्हें घेरे हुए, यहां ठीक कुछ हो कैसे सकता है? यहां सब क्षणभंगुर है। पानी के बबूले जैसा है। ठीक कुछ हो कैसे सकता है? यहां सब आया और गया, रुकता कुछ भी नहीं। यहां सुख संभव नहीं है; यहां दुख ही संभव है। ठीक यहां कुछ भी नहीं है।
यह वचन तुम्हें हैरानी से भरेगा। बुद्ध कहते हैं ‘जो शुभ ही शुभ देखने वाला है, उसकी तृष्णा और बढ़ती है।’
वे कहते हैं : जहां—जहां अशुभ है, उसे गौर से देखना, भर— आंख देखना, खूब निरीक्षण करना। जीवन में इतना अशुभ है, इतने कांटे हैं, इतनी पीड़ाएं हैं, इतना दुख है —इस सब को जो ठीक से देख लेता है, उस देखने में ही मुक्ति है। फिर देखने के बाद लोगों को नहीं कहना पड़ता : राम—नाम सत्य है। फिर ऐसा व्यक्ति स्वयं ही जान लेता है कि राम सत्य है और यहां शेष सब माया है।
‘जो व्यक्ति शुभ ही शुभ देखता, तीव्र राग से भरा है, संदेह से मथित है, उसकी तृष्णा बढ़ती है और वह अपने लिए और भी दृढ़ बंधन बनाता है।...osho
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