॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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https://youtu.be/TYX4I3pHUF0
४४०. आरती । त्रिताल ~
इहि विधि आरती राम की कीजे, आत्मा अंतर वारणा लीजे ॥ टेक ॥
तन मन चन्दन प्रेम की माला, अनहद घंटा दीन दयाला ।
ज्ञान का दीपक पवन की बाती, देव निरंजन पाँचों पाती ।
आनन्द मंगल भाव की सेवा, मनसा मन्दिर आतम देवा ।
भक्ति निरन्तर मैं बलिहारी, दादू न जानै सेव तुम्हारी ।
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव निरंजन राम की आरती की विधि बताते हुए आरती कर रहे हैं कि हे जिज्ञासुओं ! उन निरंजन राम की आरती इस प्रकार करिये । अपने अन्तःकरण के भीतर ही उन आत्म - स्वरूप निरंजन राम पर न्यौछावर होना चाहिये । अपने तन और मन को चन्दन बनाकर राम के अर्पण करिये । और अखंड प्रेमरूपी पुष्पों की माला आत्मरूप राम को धारण कराइये । और अनहद घंटा रूपी ही मानो दीन दयालु के सामने बाजे बज रहे हैं । अन्तःकरण रूपी दीपक में श्वास रूपी बत्ती में ज्ञान - सम्पादन रूप ज्योति जलाइये । इस प्रकार आत्म - स्वरूप निरंजन राम पर पाँच ज्ञानेन्द्रियें रूप तुलसी - दल चढ़ाइये । इस प्रकार आनन्दपूर्वक मंगला आरती प्रभु की करिये और अखण्ड भावमय सेवा कीजिये । उन आत्म - स्वरूप निरंजन राम का शुद्ध मनसा रूपी ही मानो मन्दिर है । उसमें आत्म - स्वरूप निरंजन ही देव है । इस प्रकार निरंतर हृदय में निरंजन राम की आरती रूप भक्ति करिये अथवा हम उन निरंजन राम की आरती रूप भक्ति निरन्तर हृदय में करते हैं और बार - बार उन पर बलिहारी जाते हैं ।
ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव कहते हैं कि हे परमेश्वर ! जैसे आप अखंड परिपूर्ण हैं, ऐसी आपकी सेवा करना हम नहीं जानते अथवा हे संतों ! उपरोक्त प्रकार से आनन्द रूप निरंजन राम की आरती करिये और बारबार उन के ऊपर अपने आपको न्यौछावर करिये । तन मन को उन की सेवा में लगाइये । अखंड प्रेम रूप माला पहनाइये और नाना प्रकार के गाजे - बाजे सहित ज्ञान - भक्ति द्वारा, निरंजनदेव के पँच ज्ञानेन्द्रियाँ रूप तुलसीदल चढ़ाइये । इस प्रकार भाव - पूर्वक सदैव जो परब्रह्म की आरती करते हैं, उनके सदा ही आनन्द मंगल बना रहता है । और फिर प्रार्थना करें कि हे दयाल रूप ब्रह्म ! हम आपकी सेवा करना नहीं जानते हैं । जैसे आप हैं, ऐसी आपकी आराधना हमसे नहीं हो सकती है ।
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