॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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https://youtu.be/ZrKpltiMkCI
४४२. उदीक्षण ताल ~
*अविचल आरती देव तुम्हारी, जुग जुग जीवन राम हमारी ॥ टेक ॥*
*मरण मीच जम काल न लागे, आवागमन सकल भ्रम भागे ॥ १ ॥*
*जोनी जीव जनम नहिं आवे, निर्भय नाँव अमर पद पावे ॥ २ ॥*
*कलिविष कसमल बँधन कापे, पार पहुँचे थिर कर थापे ॥ ३ ॥*
अनेक उधारे तैं जन तारे, दादू आरती नरक निवारे ॥ ४ ॥*
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव निरंजन राम की आरती की विधि बताते हुए आरती कर रहे हैं कि हे जिज्ञासुओं ! उस निश्चल दिव्य स्वरूप निरंजन देव की आरती इस प्रकार करो कि हे देव ! आप अविचल हैं और अविचल स्वरूप ही आपकी आरती है । हे निरंजन राम ! यह आपकी आरती जुग - जुग में हमारे जीव की जीवन रूप है । इस प्रकार जो अविचल निरंजनदेव की आरती करते हैं, उनके मरण रूप मृत्यु और जम रूप काल कभी भी पास नहीं आते हैं । और फिर आवागमन रूप चक्र तथा सम्पूर्ण भय - भ्रम उनके अन्तःकरण से भाग जाते हैं । फिर वह जीव गर्भवास में नहीं आता और न चौरासी में जाकर जन्म लेता है । इस निरंजन राम की नाम - स्मरण रूप आरती करने वाले काल - कर्म के भय से निर्भय होकर अमर पद को प्राप्त कर लेते हैं । इस प्रकार निरंजन देव की आरती करने से नाना प्रकार के विकार और कलिकाल के पाप रूपी बन्धन कट जाते हैं । ऐसे साधक पुरुष आपकी आरती करके संसार - सागर से पार होकर आपके स्वरूप को प्राप्त होते हैं । आरती करने का फल, उनको आप पारब्रह्म के स्वरूप में चिर - स्थिर करके सर्व कालबन्धन से मुक्त स्थापित कर देते हो । आपकी आरती करने वाले अनेक भक्तों का, अपने जन्म - मरण रूपी दु:खों से उद्धार करके उन्हें संसार समुद्र से पार किये हैं । यह आपकी आरती प्राणी के नरक आदि क्लेशों को निवारण कर देती है ।
अथवा हे संतों ! इस अविचल स्वरूप ब्रह्म - वाणी की जो आरती करते हैं और यह जानते हैं कि हे ब्रह्म - वाणी ! आप जुग - जुग में हमारी जीवन रूप हैं । उनके मरण रूप मृत्यु और जम रूप काल कभी नहीं लगता है और सम्पूर्ण भय - भ्रम भाग जाते हैं । वह जीव योनि में होकर कभी नहीं जन्मते हैं । गुरु वाणी का स्मरण करते हुए निर्भय होकर अमर पद को प्राप्त कर लेते हैं । कलि - काल के सम्पूर्ण विकार और पाप रूपी बन्धन सब कट जाते हैं । और ऐसे भक्तों का यह ब्रह्म - वाणी संसार - समुद्र से पार करके, ब्रह्म स्वरूप में स्थापन करती है । हे गुरु वाणी ! आपने अनेकों भक्तों को संसार - समुद्र से तार कर उद्धार किया है । हे संतों ! इस प्रकार जो वाणीजी की आरती करते हैं, उनको यह आरती नरक के दु:खों से मुक्त कर देती है ।
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