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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ५९ =*
*= आमेर नरेश के जाना =*
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फिर राजा बीरबल ने आमेर नरेश के यहां पँहुचाने की यथायोग्य व्यवस्था करदी । फिर स्वामीजी के चरण स्पर्श करके प्रणाम किया और क्षमा याचना की । पश्चात् राजा बीरबल को शुभाशीर्वाद देकर दादूजी महाराज शिष्यों सहित आमेर नरेश भगवतदास के यहां पधारे ।
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तब आमेर नरेश के सेवक अश्वारोही ने शीघ्र जाकर भगवतदास को सूचना दे दी कि स्वामीजी राजा बीरबल के यहां से आपके यहां आने के लिये प्रस्थान कर चुके हैं और यहां पहुँचने वाले ही हैं । तब राजा आतिथ्य करने के लिये अतिथि सत्कार की सामग्री लेकर द्वार पर स्थित हो गये ।
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इतने में दादूजी महाराज शिष्यों के सहित पधार गये । फिर राजा ने चरण स्पर्श पूर्वक प्रणाम करके अच्छी प्रकार विधि विधान से अतिथि सत्कार किया और महल में ले गये । वहां एक दिव्य आसन पर दादूजी महाराज को बैठाया ।
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फिर शिष्यों के यथा योग्य आसनों पर बैठ जाने पर राजा हाथ जोड़े हुए दादूजी के सन्मुख खड़ा होकर बोला - स्वामिन् ! बहुत अच्छा हुआ आप अकबर बादशाह से आनन्द पूर्वक निवृत्त होकर पधार गये । हमको तो रात-दिन भारी भय रहता था कि स्वामीजी महाराज के साथ कोई अनुचित व्यवहार नहीं हो जाय । कारण, काजी, मुल्ला आदि मुसलमान बादशाह को आपके विपरीत भड़काते ही रहते थे ।
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फिर भी परमेश्वर ने आपकी बात तो बहुत ही अच्छी प्रकार रक्खी अर्थात् सीकरी नगर में आपकी अच्छी प्रतिष्ठा हुई । आपने अकबर बादशाह के मुख्य दरबार में तेजोमय तखत दिखा कर तो पीरों की करामातों की डींगें मारने वालों के मुख नीचे करके हिन्दू धर्म की महान् प्रतिष्ठा को बल दिया ।
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हिन्दू धर्म के सभी समाज आपके इस कार्य की आजकल भारी श्लाघा कर रहे हैं । और गुरुदेव मैं तो फूला नहीं समाता हूं, कारण, मेरे द्वारा ही आपको यहां बुलवाया गया था, फिर आप मेरे गुरु भी हैं, गुरुदेव की विशेषता से शिष्य को हर्ष होना तो स्वाभाविक ही है । यह तो लोक में परम प्रसिद्ध है ।
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फिर राजा ने हाथ जोड़कर कहा - स्वामिन् ! आपने तो अनेक जीवों का उद्धार किया है, मेरे पर भी आप ऐसी कृपा करें जिससे मैं भी भक्ति करता रहूं और मेरे कुल में भी आपकी भक्ति बनी रहे और आप सदा हमारी सहायता करते रहैं ।
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आप तो निर्गुण ब्रह्म की भक्ति करते हैं, इससे दंभ, कपट और भौतिक प्रपंच का तो आपके पास प्रसंग ही नहीं है । मेरी एक प्रार्थना यह भी है कि आप प्रायः आमेर ही विराजा करें, जिससे आपके दर्शनों द्वारा आमेर निवासियों का कल्याण होगा तथा सरसंग से परम लाभ होगा ।
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*= आमेर नरेश भगवतदास को आशीर्वाद =*
राजा की उक्त प्रार्थना सुनकर दादूजी ने कहा - जैसी तुम्हारी भावना है वैसा ही होता रहेगा और आगे तुम्हारे कुल वाले भी यदि मेरे शिष्य व परशिष्यों में श्रद्धा रखेंगे तो उनको भी उनकी भावनानुसार लाभ मिलता रहेगा । लाभालाभ में व्यक्ति की भावना ही मुख्य कारण है ।
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जब तक तुम्हारे कुल में मेरी परंपरा के संतों की भक्ति रहेगी तब तक तुम्हारा राज्य बना रहेगा । मेरी परंपरा के संत तुम्हारे कुल की सर्व प्रकार से रक्षा करेंगे । जब तुम्हारे कुल के लोग मेरी परंपरा के संतों के विमुख होंगे तब ही तुम्हारे कुलवालों का राज्य जायगा, पहले नहीं जायगा ।
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उक्त प्रकार आमेर नरेश ने एक दिन और एक रात दादूजी के सत्संग का महान् आनन्द प्राप्त किया फिर राजा ने बहुत सी भेंट मंगवाई और स्वीकार करने की प्रार्थना की । तब दादूजी ने कहा - हमारे को कुछ भी कमी नहीं है । तब राजा ने अति नम्रता पूर्वक कहा - स्वामिन् ! आपके समर्पण करी हुई संपत्ति को अब और कौन रख सकता है ? अतः हे स्वामिन् ! हमारी भेंट को आप स्वीकार करैं, आपको अर्पित की गई भगवान् मुरारी के ही चढ़ती है ।
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तब दादूजी ने कहा - राजन् ! तुम हमारा कहा करो, ये भेंट चढ़ी हुई संपत्ति गरीबों को बाँट दो । दादूजी की उक्त आज्ञा मानकर राजा ने वह सब संपत्ति गरीबों को बाँट दी । इस प्रकार स्वामी दादूजी की प्रसन्नता के लिये द्रव्य लुटाकर राजा ने दादूजी के परिक्रमा दी और प्रणाम करके कहा - स्वामिन् ! आपके इस त्यागरूप धर्म को धन्यवाद है ।
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उक्त प्रकार एक दिन-रात राजा बीरबल को और एक दिन-रात आमेर नरेश भगवतदास को सुख देकर दादूजी ने आमेर नरेश को कहा - अब कल हम सीकरी से प्रस्थान कर जायेंगे । दादूजी का उक्त वचन सुनकर राजा ने कहा- भगवन् कुछ दिन ठहरकर हम लोगों को सुख प्रदान करो किंतु दादूजी महाराज ने कहा - अब नहीं ठहरेंगे ।
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तब राजा ने अकबर बादशाह और बीरबल को सूचना दे दी कि स्वामी दादूजी कल सूर्योदय होने पर पधार जायेंगे । अकबर बादशाह ने नगर में डौंडी पिटवा दी कि - "कल सूर्योदय होने पर परम संत दादूजी सीकरी से प्रस्थान कर जायेंगे, जिनको दर्शन करना हो वे सूर्योदय के समय नगर से बाहर आगरा मार्ग पर उपस्थित हो जायें ।"
(क्रमशः)
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