॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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https://youtu.be/0zBvroqdUM8
४४३. भंगताल ~
*निराकार तेरी आरती,*
*बलि जाऊँ, अनन्त भवन के राइ ॥ टेक ॥*
*बलि जाऊँ, अनन्त भवन के राइ ॥ टेक ॥*
*सुर नर सब सेवा करैं, ब्रह्मा विष्णु महेश ।*
*देव तुम्हारा भेव न जानैं, पार न पावै शेष ॥ १ ॥
*चन्द सूर आरती करैं, नमो निरंजन देव ।*
*धरणि पवन आकाश आराधैं, सबै तुम्हारी सेव ॥ २ ॥*
*सकल भवन सेवा करैं, मुनियर सिद्ध समाधि ।*
*दीन लीन ह्वै रहे संतजन, अविगत के आराधि ॥ ३ ॥*
*जै जै जीवनि राम हमारी, भक्ति करैं ल्यौ लाइ ।*
*निराकार की आरती कीजै, दादू बलि बलि जाइ ॥ ४ ॥*
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव निरंजन राम की आरती की विधि बताते हुए आरती कर रहे हैं कि हे जिज्ञासुओं ! हम तो निरंजन निराकार रूप राम की आरती इस प्रकार करते हैं कि हे निरंजन निराकार रूप राम ! अनन्त भुवनों के राजा, हम आपकी आरती करते हुए आपके बार - बार बलिहारी जाते हैं । हे नाथ ! आपकी सुर - देवता, नर - नारद आदि सभी आरती रूप सेवा करते हैं । ब्रह्मा - विष्णु - महेश भी आपकी आरती गाते हैं । परन्तु हे देव ! आपके स्वरूप का कोई भी भेद नहीं पाया है । शेष जी भी एक हजार मुख में, दो हजार जिह्वा द्वारा आपके नाम स्मरण द्वारा आपकी आरती करते हैं, किन्तु उन्होंने भी आपके स्वरूप का अन्त नहीं पाया है । चन्द्रमा - सूर्य आदि सभी आपकी सेवा रूप आरती करके बारम्बार नमस्कार कर रहे हैं । धरती, पवन, आकाश आदि सम्पूर्ण पँच महा भूत, आपकी आरती रूप सेवा में लग रहे हैं । सभी सम्पूर्ण भुवनों के निवासी, आपकी आरती रूप सेवा कर रहे हैं । मुनि लोग, सिद्ध लोग समाधि द्वारा आपकी आरती रूप सेवा में लग रहे हैं और सम्पूर्ण समाज के उत्तम भक्तजन आपकी आरती रूप सेवा कर रहे हैं । सम्पूर्ण संत भक्त दीन होकर आपकी आरती रूप सेवा में लीन हो रहे हैं । हे अव्यक्त ! उपरोक्त सभी आपकी आराधना रूप आरती कर रहे हैं । हे राम जी ! आप की जय हो, जय हो । आप ही हमारे जीवन रूप हो । हे नाथ ! हम तो अब आपकी आरती रूप भक्ति, आपकी दया में आपसे लय लगाकर कर रहे हैं । हे जिज्ञासुओं ! इस प्रकार निरंजन निराकार रूप राम की आरती रूप सेवा करके उनके ऊपर बार - बार बलिहारी जाइये ।
अथवा हे जिज्ञासुओं ! यह निरंजन निराकार रूप ब्रह्म - वाणी की आरती करिये कि हे ब्रह्मवाणी ! आपकी अनन्त भुवनों में निवास करने वाले सभी आरती रूप सेवा करते हैं । सुर भी, नर भी, ब्रह्मा - विष्णु - महेश भी, ब्रह्म - वाणी की सेवा में लग रहे हैं । हे ब्रह्म - वाणी रूप दिव्य स्वरूप देव ! आपका किसी ने अन्त नहीं पाया है । शेष जी भी ब्रह्म - वाणी के नामों को रट कर अन्त नहीं पा रहे हैं । चन्द्रमा - सूर्य भी हे ब्रह्म - वाणी आपकी आरती कर रहे हैं । धरती, पवन, आकाश, सम्पूर्ण, भूत, आप ब्रह्म - वाणी की आरती रूप सेवा कर रहे हैं । सम्पूर्ण भुवनों के निवासी सभी ब्रह्म - वाणी की सेवा में लगे हैं । मुनि लोग, सिद्ध लोग समाधि द्वारा ब्रह्म - वाणी की आरती रूप सेवा कर रहे हैं । सम्पूर्ण संत भक्त, ब्रह्म - वाणी के सामने दीन होकर आरती रूप सेवा में लीन हो रहे हैं । हे ब्रह्म - वाणी ! हे गुरु वाणी ! हे दयाल वाणी ! आपकी जय हो ! जय हो ! जय हो ! आप ही हमारी जीव रूप हैं । हे राम रूप ब्रह्म - वाणी ! आपके संत भक्त, आपमें लय लगाकर आपकी सेवा रूप आरती करते हैं । हे निराकार रूप ब्रह्म - वाणी ! हम आपकी आरती रूप सेवा करके आपके बार - बार बलिहारी जाते हैं ।
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