शनिवार, 9 जनवरी 2016

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卐 सत्यराम सा 卐
दादू शब्द अनाहद हम सुन्या, नखसिख सकल शरीर ।
सब घट हरि हरि होत है, सहजैं ही मन थीर ॥ 
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शब्द खोजि मन बस कर, सहज जोग है येह।
सत्त शब्द निज सार है,...... यह तो झूठी देह ॥

इस भौतिक देह में निनादित शब्द को पहचानकर उसी में मन को रमाना सहज योग है। यह शब्द ही सारतत्व, अविनाशी, सत्य है। इसकी साधना करने पर आत्मतत्व(जो प्रकाशरूप है) से साक्षात होता है। ज्ञान-पिपासु को योग्य गुरु की शरण में इसी साधना का अभ्यास करना चाहिए।

संत कबीरदास !
सौजन्य -- १००८ कबीरवाणी ज्ञानामृत !

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