शनिवार, 2 अप्रैल 2016

= १९९ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू औगुण गुण कर माने गुरु के, सोई शिष्य सुजाण ।
सतगुरु औगुण क्यों करै, समझै सोई सयाण ॥ 
सोने सेती बैर क्या, मारे घण के घाइ ।
दादू काटि कलंक सब, राखै कंठ लगाइ ॥ 
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साभार ~~~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
*****गुरू का हुक्म *****
गुरू नानक साहिब ने अपने सेवकों को मुर्दा खाने का हुक्म दिया । देखने में यह मुनासिब हुक्म नहीं था । हम मुर्दें को छू जाने पर नहाते हैं । फिर खाये कौन ? सब भाग गये । एक भाई लहना खङे रहे और आगे आकर मुर्दे के चारों और फिरे, गुरू नानक साहिब ने पूछा यह क्या करते हो ? तब उत्तर दिया दिया, "महाराज जी ! मैं देखता था कि किस तरफ से खाना शुरू करूं । पैरों की ओर से या सिर की ओर से ?" जब खाने लगे तो हलवा प्रसाद निकला । यह सबको नाजायज हुक्म लगा था, लेकिन भाई लहना को नहीं । 
गुरू नानक साहिब ने उनको गुरू गद्दी का हकदार बना दिया और वे भाई लहना से गुरू अंगद साहिब बन गये । इसी तरह जब गुरू गोविन्दसिंह ने अपने शिष्यो की परख की तब पाँच हजार में से सिर्फ पाँच प्यारे निकले । जब गुरू परखता है तो बङे बङे फेल हो जाते है जीव का इम्तहान में पास होना बङी मुश्किल बात है । गुरू किसी का इम्तिहान न ले । 
## सत्य राम सा

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