मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

= विन्दु (२)७५ =


🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
*लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
.
= विन्दु ७५ =
= शिष्य वाजींद =
.
वाजींद जाति के पठाण थे और उत्तर प्रदेश के किसी नगर के नवाब थे । वे एक दिन शिकार के लिये वन में गये थे । वन में भ्रमण करते-करते एक हिरणी उनको दिखाई थी । उसके उन्होंने बाण मारा । वह मृगी गर्भवती थी, बाण लगते ही उसका गर्भ पेट से बाहर निकलकर पृथ्वी पर पड़ गया और वह भी पृथ्वी पर पड़ गई फिर थोड़ी ही देर में वे दोनों प्राणी मर गये ।
.
उन दोनों की मृत्यु होते ही वाजींद के हृदय में महान् भय उत्पन्न हो गया । उन्होंने अपने मन में सोचा, यह तूने अच्छा नहीं किया है । अपनी रसना तथा दुर्व्यसन के वश में होकर इन निरपराध प्राणियों को मारा है । किसी को मारना अच्छे मानव का काम नहीं है । वास्तव में तो अच्छे मानव का काम दूसरों की रक्षा करना है । अब मैं आगे किसी को भी नहीं मारूंगा तथा न किसी को दुःख ही दूंगा ।
.
फिर उन्होंने वहां ही अपने धनुष और बाणों को तोड़कर फेंक दिया । घोड़े को भी वहां ही छोड़ दिया । घर पर भी नहीं गये । किसी पूर्व पुण्य के प्रताप से उनको तीव्र वैराग्य हो गया । अब उन्होंने ने निश्चय किया कि किसी उच्चकोटि के सन्त की शरण जाकर प्रभु प्राप्ति का ही साधन करूंगा । फिर वे जहां तहां उच्चकोटि के सन्त की खोज करने लगे ।
.
जब दादूजी सीकरी में अकबर के यहाँ ४० दिन रहे थे, तब से उत्तरप्रदेश में भी दादूजी की ख्याति हो गई थी । अतः जहाँ तहां उनको लोगों ने संत प्रवर दादूजी का नाम बताया तथा उनके जीवन की घटना और उनके उपदेशमय वचन भी जिन्होंने सीकरी, आगरा, मथुरा में सुने थे, वे भी किसी किसी ने सुनाये । तब वाजींद की संत प्रवर दादूजी पर श्रद्धा बढ़ गई फिर वे भ्रमण करते-करते आमेर दादूजी महाराज के पास पहुँच गये । दादूजी महाराज को प्रणाम करके हाथ जोड़े हुये सामने बैठ गये ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें