मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

= ज्ञानसमुद्र(च. उ. १२) =

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🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली 
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, 
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ चर्तुथ उल्लास =*

*छप्पय 
*शब्द गुणो आकाश, एकगुण कहियत जामहिं ।* 
*शब्द स्पर्श जु वायु, उभय गुण लहियहि तामहिं ॥* 
*शब्द स्पर्श जु रुप, तीन गुण पावक मांहीं ।* 
*शब्द स्पर्श जु रुप, रस जल चहुं गुण आंहीं ॥*   
*पुनि शब्द स्पर्श जु रुप रस,*
*गन्ध पञ्च गुण अबनि है ।* 
*सिख इहै अनुक्रम जानि तूं,*
*सांख्य सु मत ऐसैं कहै ॥१२॥*
प्रथम महाभूत आकाश शब्दगुणक है, अर्थात् आकाश में उपर्यक्त पाँच विषयों में से एक विषय शब्द रहता है । 
वायु उभयगुण है । अर्थात् वायु में शब्द और स्पर्श- ये दो गुण ‘विषय’ रहते हैं । पावक (=अग्नि, तेज) त्रिगुणात्मक है । अर्थात् तेज में शब्द, स्पर्श और रुप- ये तीन गुण रहते हैं । 
जल चतुर्गुणात्मक हैं । अर्थात् जल नामक महाभूत में शब्द, स्पर्श, रुप, रस- ये चार गुण रहते हैं । 
और पञ्चम महाभूत पृथ्वी पञ्चगुणात्मिका है । अर्थात् पाँचवें महाभूत पृथ्वी में शब्द, स्पर्श, रुप, रस, गन्ध- ये पाँच विषय रहते हैं । 
हे शिष्य ! सांख्यशास्त्र के मत में तामसाहंकार सृष्टि का यह अनुक्रम(क्रमश: विभाजन) है । यह तुझे भली प्रकार समझ लेना चाहिये ॥१२॥
(क्रमशः)

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