🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
.
*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ चर्तुथ उल्लास =*
.
*छप्पय*
*श्रवण तुचा दृग घ्रांण, रसन पुनि तिनि कैं संगा ।*
*ज्ञान सु इन्द्रिय पंच, भई अप अपने रंगा ॥*
*वाक्य पानि अरु पाद, उपस्थ गुदाहू कहिये ।*
*कर्म सु इन्द्रिय पंच, भली बिधि जाने रहिये ॥*
*सुनि प्रानापांन समानहू,*
*ब्यानोदांन सु वायु हैं ।*
*दश पंच रजोगुण ते भये,*
*क्रिया शक्ति कौं पायु हैं ॥१५॥*
राजसाहंकार से ज्ञानेन्द्रियों के पाँच करण- श्रवण(कान), त्वचा, दृक्(चक्षु), घ्राण(नासिका), रसना(जिह्वा) उत्पन्न हुए । उनके साथ ही(इन कारणों के सहारे) अपने-अपने विषयों का ग्रहण करने वाली(इसी नाम वाली) पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ उत्पन्न हुई ।
इसी तरह-वाक्(वाणी), पाणि(हाथ), पाद(पैर), उपस्थ(लिंग) तथा वायु(गुदा)- इन कारणों से अपने-अपने विषयों को ग्रहण करने वाली पाँच कर्मेन्द्रियाँ उत्पन्न हुई- यह बात तुम अच्छी तरह समझ लो ।
इसी प्रकार उस रजोगुण सम्पन्न अहंकार से- प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान- ये पाँच वायु उत्पन्न हुईं । यह हुई राजसाहंकार-सृष्टि, इसे शास्त्र में क्रियाशक्ति भी कहते हैं॥१५॥
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अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*छप्पय*
*श्रवण तुचा दृग घ्रांण, रसन पुनि तिनि कैं संगा ।*
*ज्ञान सु इन्द्रिय पंच, भई अप अपने रंगा ॥*
*वाक्य पानि अरु पाद, उपस्थ गुदाहू कहिये ।*
*कर्म सु इन्द्रिय पंच, भली बिधि जाने रहिये ॥*
*सुनि प्रानापांन समानहू,*
*ब्यानोदांन सु वायु हैं ।*
*दश पंच रजोगुण ते भये,*
*क्रिया शक्ति कौं पायु हैं ॥१५॥*
राजसाहंकार से ज्ञानेन्द्रियों के पाँच करण- श्रवण(कान), त्वचा, दृक्(चक्षु), घ्राण(नासिका), रसना(जिह्वा) उत्पन्न हुए । उनके साथ ही(इन कारणों के सहारे) अपने-अपने विषयों का ग्रहण करने वाली(इसी नाम वाली) पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ उत्पन्न हुई ।
इसी तरह-वाक्(वाणी), पाणि(हाथ), पाद(पैर), उपस्थ(लिंग) तथा वायु(गुदा)- इन कारणों से अपने-अपने विषयों को ग्रहण करने वाली पाँच कर्मेन्द्रियाँ उत्पन्न हुई- यह बात तुम अच्छी तरह समझ लो ।
इसी प्रकार उस रजोगुण सम्पन्न अहंकार से- प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान- ये पाँच वायु उत्पन्न हुईं । यह हुई राजसाहंकार-सृष्टि, इसे शास्त्र में क्रियाशक्ति भी कहते हैं॥१५॥
(क्रमशः)
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