॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= स्मरण का अँग २ =
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दादू का जाणौं कब होइगा, हरि सुमिरण इकतार ।
का जाणौं कब छाड़ि है, यहु मन विषय विकार ॥६७॥
कुछ पता नहीं लगता कि - यह चँचल मन विषय - विकारों में भ्रमण करना छोड़ कर कब निरँतर हरि - स्मरण परायण हो सकेगा ?
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है सो सुमिरण होता नहीं, नहीं सु कीजे काम ।
दादू यहु तन यौं गया, क्यों करि पइये राम ॥६८॥
जो अस्ति, भाति, प्रिय रूप से सर्वत्र व्याप्त सत्य ब्रह्म है, उसका तो मन से स्मरण हो नहीं रहा है और जो असत्य मायिक प्रपँच भ्रमवश भास रहा है उसके विषयों को प्राप्त करने के लिए यह मूर्ख मन ऐसे कपट कोपादि कार्य निरँतर कर रहा है जो श्रेष्ठ नहीं हैं । यह मानव देह का समय उक्त प्रकार से व्यर्थ ही चला गया । इस प्रकार के मन के भ्रमण से राम कैसे मिल सकते हैं ?
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स्मरण महिमा नाम माहात्म्य
दादू राम नाम निज मोहनी, जिन मोहे करतार ।
सुर नर शँकर मुनि जना, ब्रह्मा सृष्टि विचार ॥६९॥
६८ - ७० में स्मरण महिमा और नाम माहात्म्य कह रहे हैं - मन को प्रभु पर मोहित करने के लिए राम - नाम - स्मरण रूप मोहनी - शक्ति सभी प्राणियों की निजी है और यह शक्ति मनुष्य, मुनिजन, देवता, शँकर और सृष्टि - कार्य विचार में संलग्न ब्रह्मा के सहित परमात्मा को भी मोहित करती है ।
(क्रमशः)
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