卐 सत्यराम सा 卐
दादू नैन न देखे नैन को, अन्तर भी कुछ नाहिं ।
सतगुरु दर्पण कर दिया, अरस परस मिलि माहिं ॥
सोने सेती बैर क्या, मारे घण के घाइ ।
दादू काटि कलंक सब, राखै कंठ लगाइ ॥
पाणी माहैं राखिये, कनक कलंक न जाहि ।
दादू गुरु के ज्ञान सों, ताइ अगनि में बाहि ॥
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साभार ~ DrPremchandra Verma ~
आपके घट में अलख पुरुष अविनाशी
लोग तर्क करते हैं कि हमको गुरु की जरूरत नहीं है। हमको गुरु नहीं करना है। अब गुरु नहीं करना है तो भ्रम में पहले से ही पड़े हुए हैं। बिना गुरु के भ्रम नहीं जायेगा, क्योंकि कहा है- ‘है घट में पर बतावें, दूर की बात निरासी। कहत कबीर सुनो भाई साधो, गुरु बिन भ्रम न जासी।’ हृदय के अन्दर पहुंचने का तरीका तो आपको मालूम नहीं है। जो गुरु है, आपको हृदय के अन्दर पहुंचने का तरीका बता सकता है।
भगवान कृष्ण कहते हैं, ‘दान से, पुण्य से, तीर्थ से मेरा ज्ञान नहीं होता है।’ गीता पढ़ते हैं परन्तु कभी समझने का प्रयास नहीं करते कि किया कहा गया है? भगवान कृष्ण ने कहा है कि ‘जो कुछ है, वह मैं ही हूं। न मेरे आगे कुछ है, न मेरे पीछे है। न मेरे ऊपर कुछ है, न मेरे नीचे कुछ है।’ यह गीता का सार है कि ‘अर्जुन? जो कुछ है, मैं ही हूं। तुम भ्रमति क्यों होत हो? मैं ही हूं, मुझे मानो! मेरा ध्यान करो! अन्य सारी चीजों का ध्यान छोड़ो और मेरा ध्यान करो! तुम मुझे प्राप्त होंगे। ध्यान रहे, तुम जिसका ध्यान करोगे, उसी को प्राप्त होंगे। अगर तुम मुझे प्राप्त होना चाहते हो तो मेरा ध्यान करो! मैं ही हूं! कोई दूसरा कुछ नहीं है! मैं ही हूं! पहाड़ों में हिमालय मैं हूं। वृक्षों में वह वृक्ष मैं हूं। जहां तक इस सृष्टि की रचना है, वह सबमें मुझमें ही है। मैं ही हूं, कोई दूसरा कुछ नहीं है।’ कहा है-
विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।
सोई हंस तेरे घट मादीं, अलख पुरुष अविनाशी॥
विधि-ब्रह्म, हरि-विष्णु, हर-महादेव! ब्रह्मा, विष्णु और महादेव भी जिसका ध्यान करते हैं। सारे ऋषि-मुनिजन भी जिसका ध्यान करते हैं। सोई हंस तेरे घट माहीं- इसे करते हैं सत्संग! क्या सुन्दर बात कही गयी है। कितने ही लोग कहते हैं- ‘फलां मंदिर में जाओ! फलां यह करो, फलां वह करो। ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए। अब दान करो, पुण्य करो।’ परन्तु कबीरदास जी कहते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी जिसका ध्यान करते हैं, सोई हंस तेरे घट माहीं- आपके घट में है। आपके बगल वाले के घट में नहीं, बल्कि आपक घट में है। किसी तीर्थ स्थान में नहीं, बल्कि आपके घट में वह अलख पुरुष अविनाशी है, परन्तु बिना गुरु के उसका ज्ञान नहीं हो सकता। दूसरे तरीके से भी समझ सकते हैं। दूसरों का चेहरा देखने के लिए आपको आईने की जरूरत नहीं है, परन्तु अगर आप अपना चेहरा देखना चाहते हैं तो आपको आईने की जरूरत पड़ेगी। इसी प्रकार आप अपने अन्दर झांकना चाहते हैं तो इसके लिए आपको ज्ञान रूपी आईने की जरूरत पड़ेगी। हम यही खुशखबरी देते हैं कि ज्ञान रूपी आईना हमने दुनिया भर में लोगों को दिया। इसके लिए कोई जबरदस्ती नहीं है। प्रेम से, श्रध्दा से यदि लोग चाहते हैं तो यह ज्ञान रूपी आईना उपलब्ध है, जिसके द्वारा अपने हृदय के अन्दर उस अविनाशी का दर्शन कर सकें।
गुरु महाराज जी क्या होते हैं? गुरु महाराजी हैं- लोहार और मनुष्य है- लोहा! तो इस मनुष्य रूपी लोहे की जो किसी काम का नहीं है, इसको गुरु महाराज जी रूपी लोहार जिज्ञासा रूपी आग में डालकर गर्म करता है। जब वह लोहा एकदम लाल हो जाता है, तो लोहार उस लोहे को ज्ञान रूपी निहाई के ऊपर रखकर, सत्संग रूपी हथौड़े से ‘धड़ाधड़, धड़ाधड़’ मारना शुरू करता है और उस लोहे को बदलना शुरू करता है। लोहा भी ऐसा कि ठंडा होकर अकड़ने लगता है। इसलिए कुशल लोहार चाहिए, जो तुरन्त उसे फिर आग में रखे और गर्म करे। वह गर्म करता रहे, उसके आग से निकालकर, ज्ञान रूपी निहाई पर रखकर, सत्संग रूपी हथौड़े से ‘धड़ांग-धड़ांग’ मारता रहे, जब तक वह लोहा बदल न जाएं। जब वह बदल जायेगा तो वह सिर्फ लोहे का टुकड़ा नहीं रह जायेगा। उसका नाम ही बदल जायेगा।
अगर वह चाबी बना है तो उसका नाम अब लोहे का टुकड़ा नहीं, बल्कि ‘चाबी’ कहलायेगा! अगर वह फावड़ा बन गया है, तो अब लोहे का टुकड़ा नहीं, बल्कि ‘फावड़ा’ कहगायेगा। जब मनुष्य बदलता है तो उसका नाम क्या हो जाता है? वह है- असली मनुष्य! कहा गया है-
हित-अनहित पशु पच्छीय जाना। मानुष तन गुण ज्ञान निधाना॥
अच्छे और भले के बारे में तो पशु और पक्षी भी जानते हैं। सब जानते हैं। ‘हित क्या है, अनहित क्या है।’ यह तो पशु-पक्षी को भी मालूम है। परन्तु इस मानुष तन का क्या गुण है? मनुष्य को यह ज्ञान प्राप्त हो सकता है। जिस ज्ञान के बारे में हम चर्चा करते हैं, उससे आपका कल्याण हो सकता है। एक बार नहीं, हर दिन! हर दिन आपके अन्दर जो आनन्द का खजाना है, उसको खोदें और अपने जीवन को सफल बनाएं! बहुत से लोग शक करते हैं कि जो मैं कह रहा हूं, यह संभव नहीं है। किस-किस पर लोग शक नहीं करते हैं? लोग भगवान पर शक करते हैं। उसी को चुनौती देते हैं, ‘अगर तू है तो सामने आ, वरना नहीं है।’ अपने आप हर तो शक करते ही हैं। लोघ अपने बारे में कहते हैं कि ‘मैं इतना नीच हूं कि भगवान मेरे अन्दर हो ही नहीं सकता।’ इस जीवन के अन्दर कोई हाथ पकड़ने वाला होना चाहिए। शब्दों से काम नहीं चलेगा।
हाथ पकड़ने वाला, कोई ज्ञान रूपी निहाई वाला चाहिए, जिसके पास आग भी हो, निहाई भी हो, हथौड़ा भी हो और जो संकोच न करे। हमें कुछ बना दे, हमारी जिन्दगी को बना दे, जिन्दगी के अन्दर आनन्द की बाहर ला दे, ऐसा सक्षम सद्गुरु होना चाहिए।
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