卐 सत्यराम सा 卐
दादू सबको पाहुणा, दिवस चार संसार ।
औसर औसर सब चले, हम भी इहै विचार ॥ २५ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस संसार में सब कोई, राजा से लेकर रंक तक, चार दिन के लिये मेहमान के समान आये हैं । समय - समय पर जैसे मेहमान चले जाते हैं, वैसे ही यह प्राणधारी जीव जा रहे हैं ॥ २५ ॥
दिवस दोय का पाहुणा, जीव जगत में लोइ ।
कबहूँ देख्यो है कहुँ, चिर जीवित कलि कोइ ॥
भयमय पंथ बिखमता
सबको बैठे पंथ सिर, रहे बटाऊ होइ ।
जे आये ते जाहिंगे, इस मारग सब कोइ ॥ २६ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस संसार में मनुष्य से लेकर देव पर्यन्त, सभी लोग बटाऊ की तरह मार्ग पर बैठे हैं । समय - समय के अनुसार सभी प्रस्थान करते जा रहे हैं । जो इस संसार में पैदा हुए हैं, वे सभी इस मार्ग से निश्चय जायेंगे । कोई संसार में नहीं रहेगा । सबको काल भक्षण कर लेगा ॥ २६ ॥
यथा हि पथिकः कश्चित् छायामाश्रित्य तिष्ठति ।
विश्रम्य च पुनर्गच्छेत् तद्वत् भूतसमागमः ॥
(श्री दादूवाणी ~ काल का अंग)
चित्र सौजन्य ~ नरसिँह जायसवाल
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