शनिवार, 30 अप्रैल 2016

= ज्ञानसमुद्र(च. उ. १६-७) =

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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली 
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, 
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ चर्तुथ उल्लास =*
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*अथ सात्विकाहंकार सृष्टि ~ गीतक*
*अथ सात्विकाहंकार तें,*
*मन बुद्धि चित्त अहं भये१ ।* 
*पुनि इन्द्रियन के अधिष्ठात,*
* देवता बहु बिधि ठये ॥*
*दिग्पाल मारुत अर्क अश्‍विनि,*
*वरुण सु इंन्द्रियं ।* 
*पुनि अग्नि इंद्र उपेन्द्र मित्रजु,*
*प्रजापति कर्मेन्द्रियं ॥१६॥*
(१- सांख्यमत में ‘मन, बुद्धि और अहंकार यही तीन अन्त:करण कहे हैं । ज्ञानेन्द्रिय, कर्मेन्द्रिय बाह्य-करण कहे हैं । और ‘चित’ वेदान्त के अन्त:करण चतुष्टय में हैं, सांख्य में नहीं । (सांख्यकारिका २४ तथा सांख्यसूत्र २।१७ व १८ से) सात्विक अहंकार से मन, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ पांच कर्मेन्द्रियाँ उत्पन्न होते हैं । और देवताओं का वर्णन इन ग्रन्थों में नहीं है । (चरणदासजी के सर्वोपनिषद्-भाषा में थो़डा सा है) । )
(अब सात्विकाहंकार से होने वाले सर्ग (सृष्टि) का निरुपण करते हैं -) सात्विकाहंकार से उत्पन्न होने वाले तत्त्व हैं- १.मन, २.बुद्धि, ३.चित्त तथा ४.अहंकार । 
फिर दसों इन्द्रियों के अधिष्ठाता(स्वामी) देवता उत्पन्न हुये । उन देवताओं के नाम क्रमश: ये हैं- १.दिक्पाल, २.मरुत, ३.सूर्य, ४.अश्‍विनीकुमार तथा ५.वरुण । ये क्रमश: पाँचों श्रवण आदि ज्ञानेन्द्रियों के अधिष्ठातृ देवता हैं । 
इसी तरह १.अग्नि, २.इन्द्र, ३.विष्णु, तथा ४.मित्र ५.प्रजापति- ये पाँच वागिन्द्रिय आदि कर्मेन्द्रियों के अधिष्ठातृ-देवता हैं ॥१६॥
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*दोहा*
*शशि बिधि अरु क्षेत्रज्ञ पुनि, रुद्र सहित पहिचांनि ।* 
*भये चतुर्दश देवता, ज्ञान शक्ति यह जांनि ॥१७॥*
मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार के देवता क्रमश: ये हैं- १. चन्द्रमा, २. ब्रह्मा, ३. क्षेत्रज्ञ, तथा ४. रुद्र । इस तरह(सात्विकाहंकार से उत्पन्न) १४ पदाथों के ये अधिष्ठातृ-देवता हुये । इस सात्विका-हंकार-सृष्टि को शास्त्र में ज्ञानशक्ति भी कहते हैं ॥१७॥
(क्रमशः)

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