शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

= ज्ञानसमुद्र(च. उ. ६) =

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🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली 
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, 
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ चर्तुथ उल्लास =*
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शिष्य उवाच  ~  हंसाल 
*हे प्रभु कह्यौ तुम पुरुष चेतन्यमय,*
*बहुरि ऐसैं कह्यौ भिन्न जांनौं ।* 
*समुझि कै प्रकृति जड रुप करि कैं कही,*
*जगत कैसैं भयौ सो बखांनौं ॥६॥*
(शिष्य पूछता है-) आपने अभी कहा कि पुरुष चैतन्ययुक्त है, फिर कहा कि वह जड से अलिप्त उदासीन रहता है अत: उससे भिन्न है । उधर कहा कि प्रकृति जड है (वह स्वयं कोई कार्य नहीं कर सकती), तब प्रश्‍न उठता है- यह जगत्(संसार) कैसे बना, जब कि इसका कोई उपादान कारण ही नहीं है ? ॥६॥
(क्रमशः)

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