गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

= ५५ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
सतगुरु चरणां मस्तक धरणां, राम नाम कहि दुस्तर तिरणां ॥ टेक ॥
अठ सिधि नव निधि सहजैं पावै, अमर अभै पद सुख में आवै ॥ १ ॥
भक्ति मुक्ति बैकुंठा जाइ, अमर लोक फल लेवै आइ ॥ २ ॥
परम पदारथ मंगल चार, साहिब के सब भरे भंडार ॥ ३ ॥
नूर तेज है ज्योति अपार, दादू राता सिरजनहार ॥ ४ ॥
====================================
साभार ~ G.r. Sen ~ Mahender Singh Jangra
#एक सेब मेरे हाथ मैं देकर गुरूजी ने मुझसे पूछा इसमें कितने बीज हें बता सकते हो ? 
सेब काटकर मैंने गिनकर कहा तीन बीज हैं गुरूजी ।
गुरूजी ने एक बीज अपने हाथ में लिया और फिर पूछा इस बीज में कितने सेब हैं यह भी सोचकर बताओ ?
मैं सोचने लगा एक बीज से एक पेड़, एक पेड़ से अनेक सेव अनेक सेबो में फिर तीन तीन बीज हर बीज से फिर एक एक पेड़ और यह अनवरत क्रम ! 
गुरूजी मुस्कुराते हुए बोले : बस इसी तरह परमात्मा की कृपा हमें प्राप्त होती रहती है, बस उसकी भक्ति का एक बीज अपने मन में लगा लेने की ज़रूरत है ।
#गुरू एक तेज है जिनके आते ही सारे सन्शय के अंधकार खतम हो जाते हैं।
#गुरू वो मृदंग है जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते हैं।
#गुरू वो ज्ञान है जिसके मिलते ही पांचो शरीर एक हो जाते हैं।
#गुरू वो दीक्षा है जो सही मायने मे मिलती हे तो पार हो जाते हैं।
#गुरू वो नदी है जो निरंतर हमारे प्राण से बहती है।
#गुरू वो सत चित आनंद है जो हमे हमारी पहचान देता है।
#गुरू वो बासुरी है जिसके बजते ही अंग अंग थीरक ने लगता है।
#गुरू वो अमृत है जिसे पीके कोई कभी प्यासा नहीं।
#गुरू वो मृदन्ग है जिसे बजाते ही सोहम नाद की झलक मिलती है।
#गुरू वो कृपा हि है जो सिर्फ कुछ सद शिष्यो को विशेष रूप में मिलती है और कुछ पाकर भी समझ नहीं पाते।
#गुरू वो खजाना है जो अनमोल हे।
#गुरू वो समाधि है जो चिरकाल तक रहती है।
#गुरू वो प्रसाद है जिसके भाग्य में हो उसे कभी कुछ मांगने की ज़रूरत नहीं।
Om Guru devay namah Om

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें