॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= स्मरण का अँग २ =
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स्मरण
दादू राम शब्द मुख ले रहे, पीछै लागा जाइ ।
मनसा वाचा कर्मना, तिहिं तत सहज समाइ ॥५२॥
५१ - ५२ में स्मरण का फल कह रहे हैं - राम शब्द के स्मरण को ही
निज कल्याण का मुख्य साधन समझ कर धारण करना चाहिए और निरँतर स्मरण करते रहना चाहिए
। मन, वचन, कर्म
से निरँतर स्मरण करने पर स्मरण - कर्त्ता अनायास ही उसी राम तत्व में समा जाता है
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दादू रचि मचि लागे नाम सौं, राते माते होइ ।
देखेंगे दीदार को, सुख पावेंगे सोइ ॥५३॥
जो अपने मन को राम - नाम में अभिन्न करके नाम - स्मरण में लगे
हैं और राम में अनुरक्त होकर राम - प्रेम से मतवाले हुये रहते हैं, वे ब्रह्म का साक्षात्कार करके ब्रह्मानन्द को
प्राप्त कर सकेंगे ।
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चेतावनी
दादू सांई सेवैं सब भले, बुरा न कहिये कोइ ।
सारौं मांहीं सो बुरा, जिस घट नाम न होइ ॥५४॥
५३ - ५७ में स्मरणार्थ सचेत कर रहे हैं - जो भगवद् भजन में
संलग्न हैं, वे चाहे किसी भी जाति
के हों, उत्तम ही माने जाते हैं । उन्हें शास्त्र तथा सँत
कोई भी अधम नहीं बताते । जिसके हृदय में हरिनाम चिन्तन नहीं होता, वही सँसार के सम्पूर्ण प्राणियों में अधम है ।
(क्रमशः)
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