卐 सत्यराम सा 卐
जे उपज्या सो विनश है, कोई थिर न रहाइ ।
दादू बारी आपणी, जे दीसै सो जाइ ॥
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साभार ~ Pawan Singh Rathore ~
जी हाँ दोस्तों.......
रिश्ते दिनों-दिन इतने बिखरते जा रहे हैं, कि लोगों के पास अच्छे मौके पर तो एक-दूसरे से मिलने की फुरसत ही नहीं है ।
या फिर किसी आपसी अनबन की वजह से एक-दूसरे से मिलना ही नहीं चाहते । और जैसे ही किसी का ऊपर से बुलावा आता है तो नीचे वाले(उसके रिश्तेदार) तुरंत पहुँच जाते हैं उसकी अर्थी उठाने ।
जब वो जिन्दा था तब उसके पास बैठना पसंद नहीं करते थे, और जब वह मर गया तब रो-रोकर दुनिया को यह जताने में लगे रहते हैं कि वह उसका कोई खास रिश्तेदार है।
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दोस्तों यह जिंदगी क्षणिक है । क्या पता किसको कब इस दुनिया को छोड़कर जाना पड़ जाए । भगवान ने किसी के भी शरीर पर एक्सपायरी डेट प्रिंट करके धरती पर नहीं भेजा है ।
इसलिए कुछ पल परमार्थ के लिए जीकर देखे....... सच में बहुत खुशहाल हो जायेगी आपकी जिंदगी ........
और जब दुनिया से जाने की बारी आयेगी तो सारी अच्छाईयाँ इस दुनिया से चले जाने के बाद भी वजूद बनाएँ रखेगी ।
-पवन सिंह राठौड़

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