🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
*लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*= बिंदु ७८ =*
*= दादूजी को धन्यवाद =*
.
सभा में बहुत से सज्जन लोग भी थे । सज्जनों ने देखा राजा मौन हैं । अतः राजा ने दादूजी के भाषण को यथार्थ मान लिया है और प्रतिपक्षी पंडित भी लज्जित होकर चले गये हैं । तब सब सज्जनों ने कहा - "दादूजी को धन्य है, धन्य है, धन्य है । दादूजी ने निडर होकर जो वास्तव में दोष हैं, वे ही बताये हैं । उनका अपराध किसको लगेगा ?"
.
उन लोगों का कथन सुनकर राजा भी अपने मन में विचार करके कि - स्वामीजी ने सत्य ही कहा है बोले -
"साधु शूर का यही विचारा,
खड़ग निशंक बजावन हारा ॥ "
(जनगोपाल)
अर्थात् संत और शूरवीरों के विचार ऐसे ही होते हैं । संत निशंक होकर सत्य वचन बोलते हैं और शूरवीर निशंक होकर तलवार चलाते हैं । ये संत-शूर दोनों ही किसी से डरते नहीं हैं । संत और शूरों की यह महान् विशेषता प्रसिद्ध ही है ।
.
विवाह संबंधी विचार जो स्वामी दादूजी ने प्रकट किये, वे तो राजा को प्रिय ही लगे । इससे राजा ने उस प्रश्न को तो छोड़ दिया । फिर कुछ सोच विचार करके शिष्य संबंधी प्रश्न करने का विचार किया ।
(क्रमशः)
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*लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= बिंदु ७८ =*
*= दादूजी को धन्यवाद =*
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सभा में बहुत से सज्जन लोग भी थे । सज्जनों ने देखा राजा मौन हैं । अतः राजा ने दादूजी के भाषण को यथार्थ मान लिया है और प्रतिपक्षी पंडित भी लज्जित होकर चले गये हैं । तब सब सज्जनों ने कहा - "दादूजी को धन्य है, धन्य है, धन्य है । दादूजी ने निडर होकर जो वास्तव में दोष हैं, वे ही बताये हैं । उनका अपराध किसको लगेगा ?"
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उन लोगों का कथन सुनकर राजा भी अपने मन में विचार करके कि - स्वामीजी ने सत्य ही कहा है बोले -
"साधु शूर का यही विचारा,
खड़ग निशंक बजावन हारा ॥ "
(जनगोपाल)
अर्थात् संत और शूरवीरों के विचार ऐसे ही होते हैं । संत निशंक होकर सत्य वचन बोलते हैं और शूरवीर निशंक होकर तलवार चलाते हैं । ये संत-शूर दोनों ही किसी से डरते नहीं हैं । संत और शूरों की यह महान् विशेषता प्रसिद्ध ही है ।
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विवाह संबंधी विचार जो स्वामी दादूजी ने प्रकट किये, वे तो राजा को प्रिय ही लगे । इससे राजा ने उस प्रश्न को तो छोड़ दिया । फिर कुछ सोच विचार करके शिष्य संबंधी प्रश्न करने का विचार किया ।
(क्रमशः)
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