🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका१(ग्रन्थ२) ~ प्रथम उपदेश*
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका१ (ग्रन्थ२)*
(१-‘सर्वांगयोग’ से तात्पर्य है अनेक प्रकार के मुक्ति के साधन, जो उत्तम एवं सनातन और शास्त्रसम्मत हैं । जैसे-विभागों सहित भक्ति, राजयोगादिक सहित हठयोग ।
यथा-
मंत्रयोगी हठश्चैव राजयोगो लयस्तथा ।
योगश्चतुर्विध: प्रोक्तो योगिभिस्तत्त्वदर्शिभि: ॥
मंत्रयोग, हठयोग, राजयोग और लययोग-ये चार योग याज्ञवल्क्य ने कहे हैं । और सांख्य के अन्तर्गत सेश्वर, निरीश्वर आदि । परन्तु श्रीसुन्दरदासजी ने निरीश्वरवादी सांख्य की कहीं भी चर्चा नहीं की, अपितु उन्होंने सांख्य को वेदांत से जा मिलाया है ।)
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*अथ पंचप्रहार२ नामक*
(२- पंचप्रहार से स्वामीजी का तात्पर्य है पाँच प्रकार के पाखण्डों पर प्रहार । अर्थात् प्रबल तर्कों से उनका खण्डन करना ।)
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*प्रथम उपदेश*
*मंगलाचरण ~ दोहा*
*बन्दत हौं गुरुदेव के, नित चरणांबुज दोइ ॥*
*आतम ज्ञान प्रगट भयौ, संशय रह्यौ न कोइ३ ॥१॥*
(३- दोहे के ‘आतमज्ञान प्रगट भयो’ इत्यादि अंश से यह ध्वनि टपकती है मानों स्वामीजी ने ‘ज्ञानसमुद्र’ के पीछे यही ग्रन्थ बनाया गया हो ।)
मैं अपने गुरुदेव के दोनों चरणकमलों की सर्वदा वन्दना करता हूँ, जिनकी कृपा से मुझे आत्मज्ञान(साक्षात्कार) हो गया, और द्वैत को लेकर किसी प्रकार का भी संशय नहीं रह गया ॥१॥
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*ज्ञानप्राप्ति के साधन*
*भक्तियोग हठयोग पुनि, सांख्यसु योग विचार ॥*
*भिन्न भिन्न करि कहत हौं, तीनहुं कौ विस्तार ॥२॥*
अब इस ‘सर्वांगयोगप्रदीपिका’ ग्रन्थमें भक्तियोग, हठयोग तथा सांख्य योग के सिद्धान्तों पर विचार करते हुए उन तीनों का पृथक्-पृथक् विस्तार से वर्णन करूँगा ॥२॥
(क्रमशः)
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