मंगलवार, 5 जुलाई 2016

=६८=


卐 सत्यराम सा 卐
सो दिन कबहूँ आवेगा, दादूड़ा पीव पावेगा ॥ टेक ॥ 
क्यूं ही अपने अंग लगावेगा, तब सब दुख मेरा जावेगा ॥ १ ॥ 
पीव अपने बैन सुनावेगा, तब आनंद अंग न मावेगा ॥ २ ॥ 
पीव मेरी प्यास मिटावेगा, तब आपहि प्रेम पिलावेगा ॥ ३ ॥ 
दे अपना दर्श दिखावेगा, तब दादू मंगल गावेगा ॥ ४ ॥ 
टीका ~ हे स्वामी ! ऐसा दिवस कब होवेगा, जो हम विरहीजन आप स्वामी का साक्षात् दर्शन करेंगे ? आप अपने स्वरूप में हमारी वृत्ति लगाओगे, तो हमारे सम्पूर्ण वियोगजन्य दुःख मिट जावेंगे । हे विरहीजनों ! जब वह पीव भीतर एकत्व के वचन ज्ञान अमृत सुनावेंगे, तो अन्तःकरण में अति आनन्द बरतेगा । स्वामी विरहीजनों की आश पूरेंगे । आप स्वयं अपना अन्तस् प्रेम प्रदान करेंगे । विरहीजनों को ज्ञान - नेत्र देकर, फिर अपना व्यापक रूप प्रकट करेंगे, तब हम विरहीजन, आनन्द के मंगल गीत गावेंगे ।
प्रीतम भँवर वियोग की, सुन लीजे यह बात । 
मुख तो पीरो हो गयो, श्याम भयो सब गात ॥ ८ 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें