卐 सत्यराम सा 卐
ईश्वर समर्थाई
समता के घर सहज में, दादू दुविध्या नांहि ।
सांई समर्थ सब किया, समझि देख मन मांहि ॥ ३४ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! मुक्त - पुरुषों के अन्तःकरण में निर्द्वन्द्व परमेश्वर प्रकट ही प्रकाशता है, जिसमें द्वैतभाव का अभाव है । हे साधक ! प्रभु का समर्थाई को अपने मन में ही आत्म - ज्ञान के द्वारा अनुभव करिये ॥ ३४ ॥
न कर्तृत्वं न कर्भाणि लोकस्य सृजति प्रभुः ।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥
मूसे साहिब सूं कही, आलम सम कर देहु ।
घर ढयो मिल्यो नहिं, चुणले धन क्या लेहु ॥
दृष्टान्त ~ एक समय मूसा पैगम्बर बहिश्त में गये और खुदाताला से बोले कि सारे आलम के मनुष्यों को बराबर बना दो । खुदा बोले ~ बराबर बनाने से दुनियां का काम ठीक नहीं चलेगा । मेरा क्रम बनाया हुआ, दुनिया के लिये ठीक है । मूसा बोले ~ नहीं साहिब ! इन्सान, इन्सान में क्या फर्क ? सबको बराबर कर दीजिये । खुदा बोले ~ अच्छा ! जाओ सबको सम बना दिया । मूसा पैगम्बर जब दुनियां में आये, तो सबको बराबर देखा । एक रोज वर्षा ज्यादा होने से मूसे साहब का घर गिर गया । मूसा कई इन्सानों को बोले कि हमारे घर की चुनाई कर दो और जो कुछ मजदूरी हो, वह ले लो । लोग बोले ~ तूं ही हमारे काम कर दे, और हमसे धन ले ले । हम क्या तेरे मजदूर हैं ? जैसा तूं है, वैसे हम हैं । तब मूसे साहब दौड़कर खुदा के पास गए और बोले ~ खुदाताला जैसे पहले दुनियां थी, वैसे ही छोटे - बड़े बना दो, बराबर करने से तो काम नहीं चलता ।
पैदा किया घाट घड़, आपै आप उपाइ ।
हिकमत हुनर कारीगरी, दादू लखी न जाइ ॥ ३५ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! उस समर्थ परमेश्वर ने अपनी त्रिगुणामत्क प्रकृत्ति के द्वारा सबको उत्पन्न किये और मनुष्य के शरीर में तथा भोग इन्द्रियाँ बनाई । वैसे ही पशु - पक्षी आदि के शरीरों में भी इन्द्रियाँ बनाई । अथवा नर - मादा के संयोग से स्वतः ही सृष्टि उत्पन्न होती रहती है । उस समर्थ का तरीका, चतुरता और रचना कहने में नहीं आ सकती ॥ ३५ ॥
यंत्र बजाया साज कर, कारीगर करतार ।
पंचों का रस नाद है, दादू बोलणहार ॥ ३६ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! फिर उस समर्थ ने, शरीर रूपी यंत्र पंजीकृत पंच महाभूतों से बोलने वाला बनाया । पंचों का रस नाद है । पंचभूतों की उत्पत्ति में, प्रथम शब्द सहित आकाश की उत्पत्ति है । इनमें आप स्वयं करतार ही बोलने वाला स्थित हो रहा है ॥ ३६ ॥
(श्री दादूवाणी ~ समर्थता का अंग)
चित्र सौजन्य ~ Surender Soni
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