卐 सत्यराम सा 卐
दादू सब दिखलावैं आपको, नाना भेष बनाइ ।
जहँ आपा मेटन, हरि भजन, तिहिं दिशि कोइ न जाइ ॥
दादू भेष बहुत संसार में, हरिजन विरला कोइ ।
हरिजन राता राम सौं, दादू एकै होइ ॥
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साभार ~ दिव्य प्रेम
आज के इंसान ने अपने चेहरे पर कई चेहरे लगा रखे है। एक चेहरा हो तो उसे पहचाने। इसने तो प्याज के छिलके की तरह चेहरे पर चेहरा, उस पर फिर चेहरा और उस पर एक बार फिर चेहरा लगा रखा है। असली चेहरे का पता ही नहीं चलता। मुनिश्री ने कहा कि आज के आदमी ने जिन्दगी जीने के लिए कसौटी भी दोहरी अपना रखी है। अपने लिए कुछ और दूसरों के लिए कुछ और। अपना बेटा इंजिनियर बन जाए तो उसकी मेहनत और योग्यता में कसीदे पढ़ने लगता हैं और पड़ोसी का बेटा इंजिनियर बन जाए तो कहते हैं - घूस देकर बना होगा। यही नहीं, खुद का दिवाला निकल जाए तो आदमी कहता है कि भगवान की मर्जी और दूसरे का दिवाला निकले तो प्रतिक्रिया में कहता है - पाप का घड़ा एक दिन तो फूटना ही था।
एक चेहरे की जिन्दगी जिए बिना धर्माचरण नहीं हो सकता। आज आदमी का मंदिर की सीढ़ियों पर चेहरा कुछ और होता है और मंदिर में कुछ और होता है। जो चेहरा मंदिर में रहेगा वहीं चेहरा दुकान पर भी मिले तभी उद्धार होगा। यह मन बड़ा टेढ़ा है। मुख पर कुछ और लगता है और मन में कुछ और रखता है। दुनिया को देख कर मंजिल तय मत करो, मंजिल तय करनी है तो संत की ज़िंदगी देखकर तय किया करें !
तरूण सागर मुनि जी
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