रविवार, 3 जुलाई 2016

= विन्दु (२)७९ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
*लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ७९ =*
*= इस पद से रामू को उपदेश उपदेश किया =*
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"सांई को साँच पियारा,
साँचे साँच सुहावे देखो, साँचा सिरजन हारा ॥टेक॥
ज्यों घण धावाँ सार घड़ीजे, झूठ सबहि झड़ जाई ।
घण के घाऊँ सार रहेगा, झूंठ न मांहिं समाई ॥१॥
कनक कसौटी अग्नि मुख दीजे, पंक सबहि जल जाई ।
यों तो कसणी सांच सहेगा, झूठ सहै नहिं भाई ॥२॥
ज्यों घृत को ले ताता कीजे, ताइ ताइ तत कीन्हा ।
तत्त्व हि तत्त्व रहेगा भाई, झूठ सब हि जल खीना ॥३॥
यों तो कसणी सांच सहेगा, साँचा कस कस लेवे ।
दादू दर्शन सांचा पाये, झूठे दर्श न देवे ॥४॥
देखो भाई ! सच्चे को सत्य ही अच्छा लगता है । सृष्टिकर्ता परमात्मा सत्य है, अतः उन प्रभु को सत्य ही प्रिय है । जैसे घन की चोट मार-मारकर लोहे का कुछ बनाते हैं, तब उसका काट अलग हो जाता है और लोहा ही रह जाता है, वैसे ही सद्गुरु-घन के शब्दाघातों से सत्य रूप सार ही रहेगा । मिथ्या उसमें न समाकर अलग हो जायगा ।
सुवर्ण की परीक्षा करने पर सदोष हो तो अग्नि देते हैं, तब उसका सब मैल जल जाता है, वैसे ही ऐसी कठोर परीक्षा सच्चा ही सह सकता है, झूठा नहीं सह सकता, वह तो नष्ट हो जाता है ।
जैसे घृत को उष्ण करके उसके फूल आदि को निकाल के सार रूप घृत रख लेते हैं, वैसे ही अन्तःकरण के दोष निकाल देने पर निर्दोष आत्मतत्त्व ब्रह्मतत्त्व में मिलकर ही रहेगा । संपूर्ण मिथ्या मायिक प्रपंच की सभी भावना क्षीण होकर ज्ञान द्वारा कर्म राशि जल जायगी किन्तु इस प्रकार की कठोर परीक्षा सच्चा साधक ही सह सकेगा और सच्चा सद्गुरु ही परीक्षा करके उसके दोषों को अपहरण करेगा ।
इस प्रकार निर्मल होकर सच्चा साधक ही परमात्मा का दर्शन प्राप्त करेगा । झूठे को वे सत्य प्रभु अपना दर्शन नहीं देते हैं । अतः तुम सत्यतापूर्वक परमात्मा का भजन करो । यही तुम्हारे लिये सार रूप उपदेश है ।"
इस प्रकार उन भावुक भक्तों के मनोरथ को दादूजी ने उपदेश देकर पूर्ण कर दिया ।
इति श्री दादूचरितामृत विन्दु ७९ समाप्तः ।
(क्रमशः)

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