शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

= पंचेन्द्रियचरित्र(मी.च. ६३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*(ग्रन्थ ३) पंचेन्द्रियचरित्र*
*मीनचरित्र(३)=(३) श्रृंगी ऋषि की कथा*
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*हौं इहां कहां तैं आवा ।*
*यह स्वाद धका मोहि लावा ।*
*ॠषि सोवत सें तब जागे ।*
*कर कर झटकि अपूठे भागे ॥६३॥* 
तब उनको प्रायश्चित हुआ कि मैं यहाँ कहाँ चला आया । इस जिह्वा के स्वाद ने मुझे गर्त में ढकेल दिया ! ॠषि सोते हुए से मानो जाग उठे । तत्काल वेश्या का हाथ झटक कर उलटे अपने आश्रम की तरफ भागे ॥६३॥ 
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*पुनि आये ॠषि बन मांही ।*
*मन मैं बहुतैं पछितानी ।*
*जौ रसना स्वाद हि लागी ।*
*तौ पीछै इन्द्री जागी ॥६४॥* 
ॠषि पुनः वन में लौट आये, उन्हें बहुत ही पछतावा हुआ । जब मेरी जिह्वा स्वाद की ओर लपकी तो सारी इन्द्रियाँ उसके पीछे-पीछे अपने अपने विषयों की ओर दौड़ने को लालायित हो उठी ॥६४॥ 
(क्रमशः)

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