शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

= विन्दु (२)८९ =

॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८९ =**

फिर दादूजी का नाम सुनकर चाटसू के भक्त - हरिदास, नारायण का साला उद्धवदास, कारू, कुंभा, नन्दा, धारु और नारायण सांगानेर आये । ये चारों ही भगवद् भक्ति परायण थे । दादूजी के पास पहुंचकर प्रणामादि शिष्टाचार के पश्चात् उक्त चाटसू के भक्तों ने दादूजी से प्रार्थना की -स्वामिन् ! अब यहाँ से चाटसू पधारने की कृपा अवश्य करैं । तब दादूजी ने उनका भक्ति भाव देखकर स्वीकार कर लिया । 
= चाटसू पधारना = 
फिर चाटसू के भक्तों के साथ चाटसू के लिये प्रस्थान किया और ब्रह्मभजन करते हुये शनैः शनैः चाटसू के पास पहुंच गये । तब उक्त भक्तों ने संतों को ग्राम के बाहर एक स्थान पर ठहराया और स्वयं ग्राम में जाकर भक्त मण्डल के साथ कीर्तन करते हुये दादूजी को लेने आये और प्रणामादि शिष्टाचार के पश्चात् संकीर्तन करते हुये महान् सत्कार से ग्राम में लाये और एक अच्छे एकान्त स्थान में ठहराया । फिर वहां सत्संग होने लगा । चाटसू तथा आस पास के ग्रामों के भक्त लोग सत्संग और संत दर्शन से लाभ लेने लगे । एक दिन चाटसू में हरिदास दादूजी के सामने बैठे हुये इस विचार में निमग्न हो रहे थे कि जीवन की सफलता किस साधन से होती है । दादूजी उनके मन की बात जान गये फिर उनको समझाने के निमित्त यह पद बोला - 
= हरिदास को उपदेश = 
"का जिबना का मरणा रे भाई, 
जो तू राम न रमसि अघाई ॥टेक॥ 
का सुख संपत्ति क्षत्रपति राजा, 
वन खंड जाय बसे किहिं काजा ॥ १ ॥ 
का विद्या गुण पाठ पुराणा, 
का मूरख जो तैं राम न जाना ॥ २ ॥ 
का आसन कर अह निशि जागे, 
का फिर सोवत राम न लागे ॥ ३ ॥ 
का मुक्ता का बँधे होई, 
दादू राम न जाना सोई ॥ ४ ॥ 
यथार्थ ब्रह्मज्ञान से ही जीवन सफल होता है यह कह रहे हैं - हे भाई ! यदि तू राम के स्वरूप में अरस परस होकर अद्वैतानन्द से तृप्त नहीं हुआ हो तो अधिक जीने से और मरणे से क्या विशेषता है ? क्षत्रपति राजा होकर संपत्ति का सुख लिया तो भी क्या तृप्ति होती है ? यदि राज्यादि से तृप्ति हो जाती तो राजा लोग किस लिये बन में जाकर बसे थे ? हे यज्ञ ! यदि तू ने राम को नहीं जाना तो तेरी अधिक विद्या, गुण, कला और पुराण - पाठ से क्या लाभ है ? यदि राम के चिन्तन में नहीं लगे तो, सिद्धि प्राप्ति के लिये आसन लगा कर दिन रात जागने से और सोने से क्या तृप्ति होती है ? अर्थात् नहीं । जिनने राम को अद्वैत रूप से नहीं जाना उनकी मुक्तता और बद्धता में क्या विशेषता है ? वे तो दोनों ही सम हैं अर्थात् वाणी मात्र से अपने को मुक्त कहने वाला भी बद्ध ही है । उक्त उपदेश को सुनकर हरिदास ने जान लिया कि मुक्ति प्राप्त होने से ही जीवन की सफलता होती है और मुक्ति यथार्थ ब्रह्म ज्ञान द्वारा होती है फिर वे दादूजी के शिष्य होकर साधन करने लगे । ये दादूजी के सौ शिष्यों में हैं ।
(क्रमशः)

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