शनिवार, 31 दिसंबर 2016

= विन्दु (२)८९ =

॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८९ =**

एक दिन उद्धवदास कुछ जिज्ञासा लेकर दादूजी के सामने बैठे थे उनको उस प्रकार बैठे देखकर दादूजी ने अपने मन को ही निमित्त बनाकर उद्धवदास को यह पद सुनाया - 
**= उद्धवदास को उपदेश =** 
"मन रे राम बिना तन छीजे, 
जब यहु जाय मिले माटी में, तब कहु कैसे कीजे ॥ टेक ॥ 
पारस परस कंचन कर लीजे, सहज सुरति सुख दाई । 
माया बेलि विषय फल लागे, ता पर भूल न भाई ॥ १ ॥ 
जब लग प्राण पिंड है नीका, तब लग ताहि जनि भूले । 
यहु संसार सेमल के सुख ज्यों, ता पर तू जनि फूले ॥ २ ॥ 
अवसर यही जान जग जीवन, समझ देख सचुपावे । 
अंग अनेक आन मत भूले, दादू जनि बहकावे ॥ ३ ॥ 
मन के ब्याज से उपदेश कर रहे हैं - हे मन ! राम भजन के बिना शरीर क्षीण हो रहा है, फिर जब यह नर शरीर मिट्टी में मिल जायगा तब बता तू अन्य शरीरों में कैसे राम - भजन कर सकेगा ? अतः शीघ्र ही ब्रह्माकार वृत्ति द्वारा सुख प्रद सहज - समाधि में जा और ब्रह्म रूप पारस से मिलकर अपने को निर्मल करले । हे भाई ! मायारूप बेलि के तो विषय रूप विष - फल ही लगे हैं, उस पर तू भूलकर भी मत जाना । जब तक स्थूल सूक्ष्म - शरीर अच्छे हैं, तब तक उस प्रभु का भजन करना मत भूल । शरीर रोगी या अति वृद्ध होने पर भजन होना कठिन है । यह संसार सेमल वृक्ष के समान प्रतीति मात्र ही सुख प्रद है । सेमल के लाल फूलों को देखकर मांस के लोभ से गिद्ध आते हैं और निराश होते हैं । शुक पक्षी उसके फलों को खाने के लिये उसके पास रहते हैं किंतु उनमें से रुई निकलने से वे निराश होते हैं । वैसे ही सांसारिक सुख से किसी की भी आशा पूर्ण नहीं होती है । उस सुख पर तू मत प्रसन्न हो । यह अच्छा अवसर है, जगजीवन परमात्मा को ही अपना जान कर विचार द्वारा उनका साक्षात्कार कर, तो तुझे परमानन्द प्राप्त होगा । परमात्मा से अन्य स्त्री पुत्रादि अनेक शरीरों को देखकर उनकी आसक्ति द्वारा प्रभु को मत भूल, स्त्री पुत्रादिक मायिक प्रपंच के बहकावे मत आ । 
एक दिन सत्संग के अन्त में चाटसू में कारू ने पूछा - भगवन् ! भगवान् का स्वरूप कैसा है ? आप कृपा करके बतायें । तब दादूजी ने यह साखी बोली -
**= कारू के प्रश्न का उत्तर =** 
"वार पार नहिं नूर का, दादू तेज अनन्त । 
कीमत नहिं करतार की, ऐसा है भगवन्त ॥" 
तेज स्वरूप ब्रह्म अनन्त है, ब्रह्म के स्वरूप प्रकाश का आदि अन्त नहीं ज्ञात होता है । विश्व का आदि कर्ता होने से उसकी महिमा रूप कीमत उसके कार्य से पूर्णतः नहीं हो सकती है । ऐसा विलक्षण ब्रह्म का स्वरूप है । 
(क्रमशः)

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