शनिवार, 31 दिसंबर 2016

= पंचेन्द्रियचरित्र(मी.च. ६५-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*(ग्रन्थ ३) पंचेन्द्रियचरित्र*
*मीनचरित्र(३)=(३) श्रृंगी ऋषि की कथा*
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*जौ रसना स्वाद न होऊ ।*
*तौ इन्द्री जगै न कोई ।*
*कहै सुन्दरदास सयानां ।*
*यह मीन चरित्र बखानां ॥६५॥* 
यदि जिह्वा के स्वाद के चक्कर में न पड़ता तो दूसरी इन्द्रियाँ भी अपने विषयों के प्रति जागृत न होती । प्रज्ञासम्पन्न महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं कि इस तरह भी न चरित्र के रूपक के सहारे जिह्वास्वाद के फन्दे में फँसने से प्राणी की क्या दुर्गति होती है - यह साफ-साफ बता दिया । अब इसमें किसी को कोई सन्देह की गुन्ज्जाइश नहीं है ॥६५॥  
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*= उपसंहार = दोहा =*
*मीन चरित्र बिचारि कैं, स्वाद सबैं तजि जीव ।*
*सुन्दर रसना राति दिन, राम नाम रस पीव ॥६६॥*
इति श्रीसुन्दरदासविरचिते पंचेन्द्रियचरित्रे मीनचरित्रे जिह्वा-इन्द्रिय प्रसंगस्तृतीयोपदेशः ॥३॥ 
अतः हे सन्त जन ! इस मीनचरित्र पर सूक्ष्म विचार करते हुये सावधान साधक के जिह्वा के सभी प्रकार के स्वाद अपना हित सोचते हुये छोड़ देने चाहिये । और इस लौकिक स्वाद के बदले में इस जिह्वा के द्वारा रात-दिन राम नाम के कीर्तनरूपी अमृतरस का पान करना चाहिये ॥६६॥  
श्रीस्वामी सुन्दरदासजी कृत पंचेन्द्रियचरित्र में मीनचरित्र द्वारा जिह्वेन्द्रियप्रसंग नामक तृतीय उपदेश समाप्त ॥   
(क्रमशः)

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