卐 सत्यराम सा 卐
शूरा होइ सु मेर उलंघै, सब गुण बँध्या छूटै ।
दादू निर्भय ह्वै रहे, कायर तिणा न टूटै ॥
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साभार ~ रजनीश गुप्ता
(((((((((( विष्णु भक्त प्रह्लाद ))))))))))
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योग विद्या के बहुत बड़े जानकार और तमाम तरह की सिद्धियां रखने वाले विष्णु भक्त ब्राह्मण शिव शर्मा द्वारका में रहते थे. शिव शर्मा के पांच बेटे थे. यज्ञ, वेद, धर्म, विष्णु और सोम. सभी एक से बढ कर एक पितृ भक्त थे.
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शिव शर्मा ने अपने बेटों के पितृ प्रेम की परीक्षा लेनी का निश्चय किया. शिव शर्मा सिद्ध थे इस लिए माया रचना उनके लिए कोई कठिन बात नहीं थी. उन्होंने माया फैलाई. अगले दिन पांचों पुत्रों की माता बहुत बीमार हो गईं. उनको बहुत तेज बुखार हुआ.
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बेटों ने बहुत दौड़ धूप की. वैद्य को दिखाया पर कोई लाभ न हुआ. उनकी माता का देहांत हो गया. बेटों ने पिता से पूछा अब आगे क्या आदेश है. शिव शर्मा को तो बेटों की परीक्षा ही लेनी थी. सो उन्होंने सबसे बड़े बेटे यज्ञ को बुलाया.
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उन्होंने यज्ञ से कहा- तुम किसी तेज़ हथियार से अपनी मां के मृत शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर के इधर उधर फेंक दो. यज्ञ शर्मा ने एक बार भी न तो इसका कारण पूछा न ही कोई सवाल किया. पिता के आदेश का पालन कर आया.
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अब शिव शर्मा ने दूसरे बेटे को बुला कर कहा- बेटे वेद तुम्हारी मां तो अब रही नहीं. मैंने एक बहुत रूपवती दूसरी स्त्री देखी है. मैं उससे विवाह करना चाहता हूं. तुम उसके पास जाओ. उसे किसे भी तरह प्रसन्न कर मुझसे विवाह को तैयार करो.
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वेद शर्मा तत्काल उस युवती के घर पहुंचा और बताया कि किस तरह उसके पिता उसके प्रेम में हैं. पिता की प्रसन्नता के लिए वह उनसे विवाह कर ले. युवती बहुत नाराज हुई और उसने वेद को फटकारा.
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युवती ने कहा- तुम्हारा पिता बुजुर्ग है. दिनभर खांसता रहता है. आयु कितनी शेष है ? तुम नौजवान और खूब सूरत हो. तुम अपने पिता की बात छोड़ो, तुम ही मेरे साथ विवाह क्यों नहीं कर लेते !
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वेद ने कहा- मेरे मन में आप मेरी मां जैसी हैं. ऐसी अधार्मिक बातें न कहें. हाथ जोड़ता हूं मेरे पिता से विवाह कर लें. वेद ने युवती को बहुत मनाया पर वह न मानी.
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आखिर वेद ने कहा- आप मेरी बात मान जाएं. इसके लिए मैं आपके लिए कुछ भी करने को तैयार हूं.
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वेद की बात सुनकर स्त्री ने कहा- मेरा मन तो उस खूसट के साथ विवाह कर रहने का नहीं कहता पर मैं तुम्हारे देने की क्षमता का परख के बाद ही निर्णय करुंगी. तुम मुझे इंद्र सहित सभी देवताओं का दर्शन करा दो तो सोचती हूं.
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वेद ने अपने तपोबल से आह्वान किया तो क्षण मात्र में ही इंद्र समेत सभी देवता वहां मौजूद थे. देवताओं ने वेद से वर मांगने को कहा- वेद ने पिता की चरणों की निर्मल भक्ति मांगी. देवता वर देकर चले गए. वेद ने युवती से कहा- अब घर चलें माता.
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युवती बोली- यह तो तुम्हारी तपस्या का बल है जो तुमने दिखा दिया इसे मैं नहीं मानती. मैं तो अपने पिता से प्रति तुम्हारा प्रेम परखना चाहती हूं. मैं तुम्हारे पिता से शादी कर लूंगी अगर तुम उनके लिए अपना सर अपने ही हाथ से काट कर मुझे दे दो.
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वेद ने सिर काट कर उस युवती को दे दिया. युवती खून से सना वेद शर्मा का सर लेकर उसके पिता शिव शर्मा के पास पहुंची. वेद के सारे भाई वहीं पर थे. देखते ही बोले- वेद धन्य है जिसका शरीर पिता के काम आया.
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शिव शर्मा ने कटा सर तीसरे बेटे धर्म शर्मा को देकर आदेश दिया- तुम अपने भाई को जीवित कर दो. धर्म ने भाइयों को भेज धड़ मंगवाया और धर्मराज को पुकार कर कहा कि अगर मैं सच्चा पिता भक्त हूं तो मेरे भाई की गर्दन जुड़ जाए, वह जिंदा हो जाए.
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धर्मराज खुद आए. वेद के सिर को जोड़ा और धर्म शर्मा को पितृ भक्ति का वर देकर चले गए. वेद शर्मा जीवित हो उठा. उसने आंखें खोलीं तो वहां न तो उसके पिता थे न वह युवती. बाद में वेद ने धर्म को और धर्म ने वेद को सारी कहानी बतायी.
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कुछ दिनों बाद शिव शर्मा ने अपने चौथे बेटे से कहा, बेटे विष्णु मैं कुछ दिनों से बीमार सा महसूस कर रहा हूं, सब देख लिया, अमृत के बिना मुझे आराम न आयेगा. तुम किसी तरह स्वर्ग से अमृत ले आओ.
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काम कठिन था, विष्णु शर्मा ने योग बल की सहायता ली और स्वर्ग पहुंचे. देवता भला आसानी से अमृत क्यों देने लगे ? उन्होंने मेनका को विष्णु शर्मा को रूप जाल में फंसा कर भटकाने को भेजा. मेनका ने कई कोशिशें की पर वह नहीं फंसा.
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इंद्र ने इसके बाद कई दूसरी चालें चली. बहुत सारी विघ्न बाधाएं उपस्थित कीं. आखिर कार विष्णु शर्मा को गुस्सा आ गया और जब वह अपने तप बल का प्रयोग कर इंद्र को उनके पद से उतारने की तैयारी कर बैठे तो इंद्र खुद अपने हाथों विष्णु शर्मा को अमृत कलश सौंपने आए. . इंद्र से अमृत भरा घड़ा लेकर विष्णु ने अपने पिता को दे दिया. शिव शर्मा अमृत पाकर बहुत खुश हुए. सभी बेटों को बुलाया और बोले- तुम सब की पितृ भक्ति से मैं बहुत प्रसन्न हूं. तुम लोग कोई वरदान मांगना चाहते हो तो मांग लो.
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बेटों ने एक स्वर से कहा- हमारी मां को जीवित कर दीजिए. शिव शर्मा ने फिर अपनी सिद्धि का सहारा लिया और मां जीवित होकर बेटों के बीच खड़ी हो गईं.
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शिव शर्मा ने पूछा- बेटों मैं तो तुम्हें आज स्वर्ग या अक्षय लोक तक दे सकता था तुमने वह क्यों नहीं मांगा ? बेटों ने कहा- ठीक है आप अब वही वर दे दीजिए. शिव शर्मा ने कहा- ऐसा ही हो. इतना कहना था कि रोशनी बिखेरता अक्षय लोक का दिव्य विमान उतर आया.
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विमान में से भगवान के सेवक उतरे और सब को बैठकर विष्णु लोक चलने को कहा. शिव शर्मा ने कहा- मैं, मेरा बेटा सोम और पत्नी अभी विष्णु लोक नहीं जायेंगे. आप इन चार बेटों को ही विष्णु धाम दें.
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विमान चारों बेटों यज्ञ, विष्णु, धर्म, और वेद को लेकर विष्णु लोक चला गया. शिव शर्मा ने चारों बेटों को विष्णु लोक भेज दिया लेकिन अभी सोम की परीक्षा तो उन्होंने ली ही नहीं थी.
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एक दिन उन्होंने सोम से कहा- सोम मैं तुमको एक कठिन काम सौंपना चाहता हूं. हम दोनों कल ही तीर्थ यात्रा पर निकल रहे हैं. हमें लौटने में समय लगेगा. घर में अमृत जैसी कीमती चीज रखी है तुम्हें इसकी जी जान से रक्षा करनी होगी.
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अपने पिता से आदेश पाकर सोम बहुत खुश हुआ. वह अमृत की रखवाली करने लगा. दस साल बाद सोम के माता-पिता तीर्थ यात्रा से लौटे. उनके पूरे शरीर में कोढ फूट गया था.
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कई अंग गलने के करीब थे. वे किसी तरह चल फिर सकने वाले मांस का पिंड भर रह गये थे जिन्हें देखते ही घिन्न आती थी. सोम यह देख अचरज से पूछ बैठा- आप तो साक्षात विष्णु के समान हैं, आप को यह अधम बीमारी कैसे लग सकती है ?
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यह सब शिव शर्मा की फैलायी माया थी. पर शिव शर्मा ने कहा- बेटा हो सकता है पिछले जन्म का कोई पाप इस जन्म में उभर आया हो. अब तो इसे झेलना ही है. सोम मन से माता पिता की सेवा में लगा रहता.
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वह उनका मल मूत्र, मवाद धोता, दवा देता, खिलाता, पिलाता, सुलाता. उलटे शिव शर्मा उसे डांटते, फटकारते और मारते ही रहते. शिव शर्मा ने सोचा कि कठोर व्यवहार के बाद भी यह न कभी नाराज होता है न शिकायत करता है.बस सेवा में लगा रहता है.
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इस परीक्षा में यह पास तो है पर इसकी एक आखिरी परीक्षा और लेकर देखा जाए. शिव शर्मा ने सोम से कहा- तुम्हारी रखवाली में हम अमृत कलश छोड़ गए थे. इस बीमारी से मुक्ति पाने का अब बस वही एक रास्ता है. अमृत कलश में से अमृत पिलाओ.
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यह आदेश देने से पहले शिव शर्मा ने माया का प्रयोग करके अमृत को चुरा लिया था. सोम जब अमृत लेने गया तो कलश खाली था. वह बड़ा चिंतित और दुःखी हुआ कि आखिर मेरी रखवाली में रखे इस कलश से अमृत ले कौन गया ?
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उसने आंखें बंदकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की- भगवन् अगर मेरी तपस्या सच्ची है तो यह अमृत कलश पहले की तरह भर जाए. सोम ने आंखें खोलीं तो अमृत का कलश लबा लब भरा हुआ था.
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सोम ने अमृत कलश लिया और मां पिता के पास पहुंच कर उनके चरणों में प्रणाम किया फिर अमृत पीने का आग्रह किया. पर वे तो बिना अमृत पीए ही भले चंगे थे. उनकी तो समूची देह चमक रही थी.
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सोम माता पिता को स्वस्थ देख खुश था. पिता अपने बेटे की पितृ भक्ति देख प्रसन्न थे. शिव शर्मा ने सोम को अनगिनत आशीर्वाद दिए. उसी समय एक दिव्य विमान उतरा जो विष्णु लोक से आया था.
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सोम शर्मा सहित उनके माता-पिता को बिठा कर विष्णु लोक को रवाना हो गया. सोम शर्मा की इस अद्भुत भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु भी बड़े प्रसन्न हुए. अगले जन्म में सोम शर्मा महान विष्णु भक्त प्रह्लाद हुए.
( स्रोतः पद्म पुराण )
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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