रविवार, 1 जनवरी 2017

= पंचेन्द्रियचरित्र(प.च. १-२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*(ग्रन्थ ३) पंचेन्द्रियचरित्र*
*= पतंगचरित्र(४) = पतंगरूपक =*
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*= दोहा =*  
*देह दीप छवि तेल त्रिय, बाती बचन बनाइ ।*
*बदन ज्योति दृग देखि कैं, परत पतंगा आइ ॥१॥* 
(कवि पतंगचरित्र प्रारम्भ करते हुए रूपकालान्कार से आध्यात्मिक पतंग का वर्णन कर रहे हैं -) नारी का देह दीपकतुल्य है, उसकी रूप-शोभा तैल के स्थान पर समझो । और उसकी प्यार भरी चिकनी-चुपड़ी बातें दीपक में बत्ती के सदृश हैं । उसके शरीर की रूपराशि पर नजर पड़ते ही मनुष्यरूपी पतंग उस पर टूट पड़ते हैं ॥१॥  
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*= सषी =*
*तहं परत पतंगा आई ।*
*वह जोति देखि जर जाई ।*
*कछु खान पान नहिं होई ।*
*जरि भस्म भये शठ सोई ॥२॥* 
उस नारी-छवि पर मनुष्यरूपी पतंग चारों ओर मँडराते रहते हैं । और एक दिन उस शोभा के निरखने में ही अपने आप को विनष्ट भी कर डालते हैं । नारी के रूप-दर्शन से मनुष्य को क्या मिल जाता है ! वहाँ कोई पेट भर खाने की चीज तो है नहीं कि मनुष्य उसके लोभ में उसके चारों ओर मँडरावे । यह उसका निरा पागलपन ही समझना चाहिये कि वह उसकी रूपशोभा में अपने आप को जलाकर खाक कर डालता है ॥२॥
(क्रमशः)

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