🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*(ग्रन्थ ३) पंचेन्द्रियचरित्र*
*= पतंगचरित्र(४) = पतंगरूपक =*
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*यह दृष्टि चहूँ दिशि धावै ।*
*यह दृष्टि हि खता खवावै ।*
*यह दृष्टि जहां जहां अटकै ।*
*मन जाइ तहां तहां भटकै ॥५॥*
यह दृष्टि(विषयलोलुप इन्द्रिय) ही है जो निरन्तर चारों ओर घूमती रहती है । यही भोले-भाले आदमियों से जाने-बेजाने अपराध कराती रहती है । यह नजर जहाँ-तहाँ(सुन्दर वस्तुओं पर) जा कर ठहरती है, मानव का चंचल मन वहाँ-वहाँ दौड़ ही जाता है, रोके नहीं रुकता ॥५॥
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*यह दृष्टि निहारै बामा ।*
*यह दृष्टि जगावै कामा ।*
*जब देखै दृष्टि स्वरूपा ।*
*तब जाइ परै अन्ध कूपा ॥६॥*
आदमियों की यह नजर ज्यों ही किसी नारी-शरीर पर पड़ती है, उनमें कामोद्रेक हो जाता है । और जो उस नारी-शरीर को जब नजदीक से देख पाता है तो उस मनुष्य को पापगर्त(अन्धकूप) में पड़ने से कोई रोक नहीं पाता ॥६॥
(क्रमशः)
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