बुधवार, 4 जनवरी 2017

= १९४ =

卐 सत्यराम सा 卐
देख दीवाने ह्वै गए, दादू खरे सयान ।
वार पार कोई ना लहै, दादू है हैरान ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya

उसका रहस्य ******
जीवन के संबंध में जितनी धारणायें हैं, वे सब मनुष्य की भाषायें हैं—अज्ञात को शांत बनाने की चेष्टा है; किसी तरह अपरिभाषित को परिभाषा देने का उपाय है....

नाम लगा दिया तो थोड़ी राहत मिलती है कि चलो हमने जान लिया, अब परमात्मा इतनी बड़ी घटना है, किसने कब जाना, कौन जान सकता है, जानने का तो मतलब होगा परमात्मा को आर—पार देख लिया, आर—पार देखने का तो मतलब होगा उसकी सीमा है, जिसकी सीमा है, वह परमात्मा नहीं, जो असीम है, जिसका पारावार नहीं है न प्रारंभ है न अंत है—तुम उसको पूरा—पूरा कैसे जानोगे? कभी नहीं जानोगे, उसका रहस्य तो रहस्य ही रहेगा

विज्ञान कहता है : हम दो शब्द मानते हैं—ज्ञात और अज्ञात; नोन और अननोन, विज्ञान कहता है : ज्ञान वह है जो हमने जान लिया और अज्ञात वह है जो हम जान लेंगे, धर्म कहता है. हम तीन शब्द मानते हैं—ज्ञात, अज्ञात और अज्ञेय, ज्ञात वह है जो हमने जान लिया, अज्ञात वह है जो हम जान लेंगे, अज्ञेय, वह जो हम कभी नहीं जान पायेंगे...

परमात्मा अज्ञेय है..
उस अज्ञेय में श्रद्धा. सभी जानने पर समाप्त नहीं हो जाता, इस भाव का नाम श्रद्धा है, जो जान लिया वह तो क्षुद्र हो गया जो अनजाना रह गया है, वही विराट है, इस बात का नाम श्रद्धा है
osho

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