सोमवार, 9 जनवरी 2017

= ४ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू कर्त्ता करै तो निमष में, ठाली भरै भंडार ।
भरिया गह ठाली करै, ऐसा सिरजनहार ॥ 
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साभार ~ Rajnish Gupta

(((( गरीब त्रिजट पर श्रीराम कृपा ))))
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भगवान श्रीराम को अयोध्या का राज पाट की बजाए वनवास मिला. श्रीराम इस बात से कतई उदास नहीं थे बल्कि वे तो इस बात पर खुश थे कि पिता के आदेश के पालन का अवसर मिल रहा है. इस खुशी में उन्होंने यह तय किया कि जंगल जाने से पहले वे अपने पास की सभी धन संपत्ति दान कर जायेंगे.
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भगवान राम ने अपने सभी सेवकों को बुलाया और चौदह साल तक के लिये रहने खाने के लिये भरपूर धन दे दिया. इसके बाद उन्होंने दीन दुखियों में खूब सारा धन बांटा और ब्राह्मणों को दान तथा बालकों को उपहार दिये. रामचंद्र जी के कुबेर की तरह धन लुटाने की चर्चा दूर दूर तक फैल गयी.
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वनगमन के लिये ज्यादा वक्त नहीं था. जो भी समय मिला भगवान ने यह कार्य निबटा दिया और अपने पास का सारा धन लोगों में बांट दिया. अब वे वन जाने के लिये तैयार थे. ठीक उसी समय उनके सामने एक बेहद दुबला पतला, कमजोर सा गरीब ब्राह्मण आन पहुंचा.
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यह त्रिजट था. त्रिजट अयोध्या के ही एक गांव में रहता था. गर्ग गोत्र के इस गरीब ब्राह्मण के पास पेट पालने का कोई साधन न था. खाने पहनने के लाले पड़े रहते. भूखे रहने के कारण पेट पीठ सट गये थे और भिक्षा मांगने जाना भी मुश्किल हो रहा था.
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एक दिन त्रिजट की पत्नी ने कहा, स्वामी आप भगवान श्री रामचंद्रजी से मिलिये वे बड़े धयालु और धर्म के मानने वाले हैं, गरीब ब्राह्मण का दुखड़ा सुनकर भोजन भर का कोई प्रबंध जरूर कर देंगे. पत्नी की बात मान कर त्रिजट भगवान राम के पास आया था जो अब वन जाने को तैयार खड़े थे.
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भगवान राम को वन जाना है इस बात का जब फैसला हुआ तब तो त्रिजट रास्ते में था इसलिये उसको न तो भगवान के वन जाने के बारे में ही और न ही उनके द्वारा मनाये जा रहे उस ‘वन यात्रा दान महोत्सव’ के बारे में कुछ पता था. 
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इसलिये वह श्रीरामचंद्रजी के पास पहुंचते अपना दुखड़ा रोने लगा. वह बोला, हे राजकुमार, मैं निर्धन हूं, मेरी बहुत सी संतानें हैं. आप मेरी दशा को देखें. आपके ही राज में रहता हूं. ब्राह्मण हूं. मेरे ऊपर कुछ कृपादृष्टि फेरिये. कुछ सहायता कीजिये.
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त्रिजट का सींक जैसा शरीर देख कर और बहुत सी संतानों की बात सुन कर वन जाने को तैयार भगवान को उस परिस्थिति में भी हंसी सी आ गयी.
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बेहद कमजोर देह वाले त्रिजट को देख भगवान को थोड़ी मजाक सूझी. भगवान सब कुछ तो बांट चुके थे, दान दे चुके थे. वे त्रिजट से बोले, विप्रवर आप वहां चरती गायें देख रहे हैं, बस अपना ड़ंडा फेंकिये , जितनी दूर पर आपका ड़ंडा गिरेगा वहां तक की गऊएं आपकी.
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त्रिजट ने अपनी धोती को भली प्रकार समेटी, एक लंबी सांस भरी, ड़ंड़े को तौला और पूरी ताकत लगा कर ड़ंड़ा फेंका तो वह सनसनाता हुआ सरयू के उस पार जा गिरा, लोग त्रिजट के कमजोर शरीर के इस असंभव ताकत को देख कर अचरज से भर उठे. वहाँ हजार से ज्यादा गाएं चर रही थीं.
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भगवान ने त्रिजट को गले से लगा लगा लिया और बोले, यह सारी गाएं आपके आश्रम पर पहुंचा दी जायेंगी पर ब्राह्मण देवता मेरी बात का बुरा मत मानियेगा मैंने मजाक में ही ऐसी बात कह दी थी. गोदान लेने के बाद त्रिजट श्रीराम को धन्यवाद और आशीर्वाद देकर अपने घर के रास्ते पर बढ गया और गो दान कर रामचंद्र जी वन जाने के मार्ग पर.
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लोगों ने कहा, श्रीराम ने त्रिजट के साथ मजाक नहीं किया था. वास्तव में गोदान सर्वश्रेष्ठ दान है. भगवान उसे इतनी सारी गायें देना चाहते थे, वरना त्रिजट में इतनी दूर ड़ंडा फेंकने की ताकत कहां. यह गो दान त्रिजट के लिये यह उसकी सारी जरूरतों को पूरा करने वाला था, इससे उसकी सेहत सुधरने के साथ साथ आजीविका का भी प्रबंध हो गया.
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स्रोत : वाल्मीकि रामायण अय्योध्या कांड
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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