卐 सत्यराम सा 卐
☀ (बाल्यावस्था)
पहले पहरे रैणि दे, बणिजारिया, तूँ आया इहि संसार वे ।
मायादा रस पीवण लग्गा, बिसार्या सिरजनहार वे ।
सिरजनहार बिसारा किया पसारा, मात पिता कुल नार वे ।
झूठी माया आप बँधाया, चेतै नहीं गँवार वे ।
दादू दास कहै, बणिजारा, तूँ आया इहि संसार वे ॥ १ ॥
☀ (तरुण अवस्था)
दूजे पहरै रैणि दे, बणिजारिया, तूँ रत्ता तरुणी नाल वे ।
माया मोह फिरै मतवाला, राम न सक्या संभाल वे ।
राम न संभाले, रत्ता नाले, अंध न सूझै काल वे ।
हरि नहीं ध्याया, जन्म गँवाया, दह दिशि फूटा ताल वे ।
दह दिशि फूटा, नीर निखूटा, लेखा डेवण साल वे ।
दादू दास कहै, बणिजारा, तूँ रत्ता तरुणी नाल वे ॥ २ ॥
☀ (प्रौढ अवस्था)
तीजे पहरे रैणि दे, बणिजारिया, तैं बहुत उठाया भार वे ।
जो मन भाया, सो कर आया, ना कुछ किया विचार वे ।
विचार न कीया नाम न लीया, क्यों कर लंघै पार वे ।
पार न पावे, फिर पछितावे, डूबण लग्गा धार वे ।
डूबण लग्गा, भेरा भग्गा, हाथ न आया सार वे ।
दादू दास कहै, बणिजारा, तैं बहुत उठाया भार वे ॥ ३ ॥
☀ वृद्धावस्था जर्जरी भूत(वृद्धावस्था)
चौथे पहरे रैणि दे, बणिजारिया, तूँ पक्का हुआ पीर वे ।
जोबन गया, जरा वियापी, नांही सुधि शरीर वे ।
सुधि ना पाई, रैणि गँवाई, नैंनहुँ आया नीर वे ।
भव-जल भेरा डूबण लग्गा, कोई न बंधै धीर वे ।
कोई धीर न बंधे जम के फंधे, क्यों कर लंघे तीर वे ।
दादू दास कहै, बणिजारा, तूँ पक्का हुआ पीर वे ॥ ४ ॥
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साभार ~ Archana Maheshwari
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, हम ध्यान को बैठते हैं, तो नींद आ जाती है। आ ही जाएगी। ताकत भी तो बचनी चाहिए थोड़ी-बहुत। लास्ट आइटम समझा हुआ है ध्यान को! जब सब कर चुके, सब तरह की बेवकूफियां निपटा चुके–लड़ चुके, झगड़ चुके, क्रोध कर चुके; प्रेम-घृणा, मित्रता-शत्रुता–सब कर चुके, कौड़ी-कौड़ी पर सब गंवा चुके। जब कुछ भी नहीं बचता करने को, रद्दी में दो पैसे का खरीदा हुआ अखबार भी दिन में दस दफे चढ़ चुके। रेडियो का नाब कई दफा खोल चुके, बंद कर चुके। वही बकवास पत्नी से, बेटे से, जो हजार दफा हो चुकी है, कर चुके। जब कुछ भी नहीं बचता है करने को, तब एक आदमी सोचता है कि चलो, अब ध्यान कर लें। तब वह आंख बंद करके बैठ जाता है!
इतनी इंपोटेंस से, इतने शक्ति-दौर्बल्य से कभी ध्यान नहीं होने वाला है। भीतर आप नहीं जाएंगे, नींद में चले जाएंगे। शक्ति चाहिए भीतर की यात्रा के लिए भी। इसलिए आत्म-ज्ञान की तरफ जाने वाले व्यक्ति को समझना चाहिए, एक-एक कण शक्ति का मूल्य चुका रहे हैं आप, और बहुत महंगा मूल्य चुका रहे हैं।
जब एक आदमी किसी पर क्रोध से भरकर आग से भर जाता है, तब उसे पता नहीं कि वह क्या गंवा रहा है ! उसे कुछ भी पता नहीं कि वह क्या खो रहा है ! इतनी शक्ति पर, जिसमें उसने सिर्फ चार गालियां फेंकीं, इतनी शक्ति को लेकर तो वह गहरे ध्यान में कूद सकता था।
एक आदमी ताश खेलकर क्या गंवा रहा है, उसे पता नहीं। एक आदमी शतरंज के घोड़ों पर, हाथियों पर लगा हुआ है। वह क्या गंवा रहा है, उसे पता नहीं। एक आदमी सिगरेट पीकर धुआं निकाल रहा है बाहर-भीतर। वह क्या गंवा रहा है, उसे पता नहीं। इतनी शक्ति से तो भीतर की यात्रा हो सकती थी।
और ध्यान रहे, बूंद-बूंद चूकर सागर समाप्त जाते हैं। और आदमी के पास, इस शरीर के कारण, सीमित शक्ति है। जीवन बहुत जल्दी रिक्त हो जाता है।
तीन सूत्र आपसे कहता हूं। इन तीन सूत्रों का यदि खयाल रहे–
☀संकल्प, विल
☀साहस, करेज
☀संयम, कंजरवेशन
अगर ये तीन सूत्र खयाल में रह जाएं, तो आपका आत्म-अज्ञान भभककर जल सकता है। और उस क्षण में आत्म-अज्ञान विलीन हो जाता है। और जो जानता है स्वयं को…।
ओशो
गीता दर्शन-(भाग–2) (अध्याय–5) प्रवचन–54
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